SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण द्वारिका का विनाश कैसे : एक समय भगवान् अरिष्टनेमि द्वारवती नगरी के बाहर सहस्राम्र वन में विराजे । श्रीकृष्ण अपनी धर्मपत्नी महारानी पद्मावती के साथ दर्शन के लिए गये । उस समय श्रीकृष्ण ने भगवान् को वन्दन कर प्रश्न किया प्रभो ! नौ योजनप्रमाण विस्तृत, देवलोकसदृश सुन्दर इस द्वारवती नगरी का विनाश किस प्रकार होगा ?५८ भगवान् ने समाधान दिया-कृष्ण ! इस विस्तृत देवपुरी के समान द्वारवती का विनाश मदिरा, अग्नि और द्वोपायन-इन तीन कारणों से होगा। ५९ । __ भगवान् की भविष्यवाणी सुनकर श्रीकृष्ण वासुदेव चिन्तन सागर में गहराई से डुबकी लगाने लगे। वे विचारने लगे-धन्य हैं जालि, मयालि, उवयाली, पुरुषसेन, वारिषेण, प्रद्य म्न, साम्ब, अनिरुद्ध, दृढ़नेमि, सत्यनेमि प्रभृति कुमार श्रमणों को, जिन्होंने भरी जवानी में संयममार्ग ग्रहण किया। राज्य वैभव को त्याग कर अर्हत् अरिष्टनेमि के पास प्रव्रज्या स्वीकार की। पर मैं अधन्य हूँ, अकतपूण्य हं, राज्य वैभव में, अन्तःपुर में, मानव सम्बन्धी कामभोगों में आसक्त बना हुआ हूँ। इन सभी का त्याग कर अर्हत् अरिष्टनेमि के पास प्रव्रज्या ग्रहण करने में समर्थ नहीं हूँ ।६० ५७. अन्तकृतदशा वर्ग ४, १-१० ५८. (क) भंते ! बारवई णयरीए दुवालसजोयणआयामाए णवजोयण विच्छिण्णाए जाव पच्चक्खं देवलोगभूयाए किंमूलए विणासे भविस्सइ? -अन्तगडदशा वर्ग, ५, अ० १ (ख) त्रिषष्टि० ८।११ ५६. अरहा अरिट्ठणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु कण्हा ! इमीसे बारवईए णयरीए दुवालसजोयणआयामाए णवजोयण विच्छिण्णाए जाव पच्चक्खंदेवलोगभूयाए सुरग्गिदीवायणमूलए विणासे भविस्सई॥ -अन्तगडदसा वर्ग ५, अ० १ ६०. अन्तगडदसा वर्ग, ५, अ० १, सूत्र ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy