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________________ ११० भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण है। इस सम्बन्ध में विद्वानों को विशेष रूप से विचार करना चाहिए। राजीमती की दीक्षा : उत्तराध्ययन की सुखबोधा वृत्ति३२ व वादीवेताल शान्तिसूरि रचित बृहद्वत्ति में ; मलधारी आचार्य हेमचन्द्र के भव भावना ग्रन्थ33 के अनुसार भगवान् अरिष्टनेमि के प्रथम प्रवचन को सुनकर ही राजीमती ने दीक्षा ली। और त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के अनुसार गजसुकुमाल मुनि के मोक्ष जाने के पश्चात् राजीमती, नन्द की कन्या एकवाशा और यादवों की अनेक महिलाओं के साथ दीक्षा लेती है।36 राजीमती के अन्तर्मानस में ये विचार लहरियां उदबूद्ध हुई कि भगवान् अरिष्टनेमि को धन्य है जिन्होंने मोह को जीत लिया है, निर्मोही बन चुके हैं। मुझे धिक्कार है जो मोह के दल-दल में ३१. (क) आप तो नेम जी पेली पधारचा, मुझे न लिधी लार । आप पेली में जाऊं मुगत में, जाणजो थांरी नार । चोपन्न दिनों रे पेली यो सती, पोहती मोक्ष मझार । नेम रोजुल या सरीखी जोड़ी, थोड़ी इण संसार ॥ -नेमवाणी-पृ० २२३, सं० पुष्करमुनिजी म० (ख) श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, भाग० ५, पृ० २७४ ३२. परितुट्ठमणा य रायमई वि पत्ता समोस रणं । -उत्तराध्ययन सुखबोधा पृ० २८१ इत्थं चासौ तावदवस्थिता यावदन्यत्र प्रविहृत्य तत्रैव भगवानाजगाम, तत उत्पन्नकेवलस्य भगवतो निशम्य देशनां विशेषत उत्पन्नवैराग्या किं कृतवंतीत्याह 'अहे' त्यादि -वृहद्वृत्ति पत्र ४६३ ३३. पुन्वभवब्भासेणं तो पडिबंधो इमीइ सविसेसो। इय कहियम्मि भगवया तुट्ठा कण्हाइणो सव्वे ॥ राइमई वि य अहियं परितुट्ठा वड्ढमाणसंवेगा। पव्वज्जं पडिवज्जइ जिणेण दिन्नं सहत्थेण ।। -भव-भावना ३७१६, १७, पृ० २४६ ३४. त्रिषष्टि० ८।१०।१४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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