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________________ १०४ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण सूर्योदय की वेला बतलाई गई है जब कि कल्पसूत्र में आचार्य भद्रबाहु ने अमावस्या के दिन का पश्चिम भाग लिखा है । चउप्पन्नमहापुरिसचरिय, उत्तराध्ययन सुखबोधा' में समय का निर्देश नहीं है । ८ ने आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण में" और आचार्य गुणभद्र उत्तरपुराण में भगवान् अरिष्टनेमि का छद्मस्थ काल छप्पन दिन का माना है और भगवान् को केवलज्ञान आश्विन शुक्ला ३. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहेवासे इमीसे णं ओसप्पिणी तेवीसा जिणाणं सूरुग्गमण मुहुत्त सि केवलवरनाण दंसणे समुत्पणे । – समवायांग २३।२, पृ० ४७ कमलमुनि ४. तेवीसाए नाणं उप्पन्नं जिणवराणपुव्वहे । वीरस्स पच्छिमण्हे पमाणपत्ताए चरमाए ॥ - आवश्यक नियुक्ति गा० २७५, पृ० २०७ ५. आश्विनस्यामावस्यायां पूर्वा त्वाष्ट्रगे विधौ । केवलज्ञानमुत्पेदे स्वामिनोऽरिष्टनेमिनः ॥ - त्रिषष्टि० ८२७७, पृ० १३६ ६. पत्तस्स घाइकम्मे सयले खीणम्मि अट्टमतवेण । आसोय बहुलक्खे अमावसाय पुब्वहे || ७. पन्नरसीपक्खेणं दिवसस्स पच्छिमे भागे । ८. देखिए अनुवाद पृ० २५७ ६. उप्पन्नं तत्थ सुहज्झवसाणस्स केवलनाणं । Jain Education International --भव-भावना ४६२३, पृ० २३७ - कल्पसूत्र १६५, पृ० २३३ आसोयअमावसाए अट्ठमभतंते - उत्तराध्ययन सुखबोधा पृ० २८० १०. षट्पञ्चाशदहोरात्रकालं सुतपसा नयत् ।। पूर्वाश्वयुजस्यातः शुक्ल प्रतिपदि प्रभुः । शुक्लध्यानाग्निना दग्ध्वा चतुर्घातिमहावनम् ॥ अनन्तकेवलज्ञानदर्शनादिचतुष्टयम् त्रैलोक्येन्द्रासनाकम्पि सम्प्रापत्परदुर्लभम् ॥ 1 - हरिवंशपुराण ५६, श्लो० १११-११३ पृ० ६४३-४४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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