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________________ जन्म एवं विवाह प्रसंग हुई, आनन्द क्रीडा करने लगी। स्नानादि के पश्चात् गीले वस्त्र को निचोड़ने के लिए श्री कृष्ण की कृपापात्री जाम्बवती (उत्तर पुराण में सत्यभामा) की ओर देखा ।५९ जाम्बवती अत्यन्त चतुर थी। उसने कटाक्ष करते हुए कहा-अरिष्टनेमि ! तुम जानते हो, मैं उस श्री कृष्ण की पत्नी है, जिसका पराक्रम विश्व-विश्रत है। उन्होंने भी मुझे ऐसा आदेश कभी नहीं दिया जैसा आप दे रहे हैं। क्या आप में उतना पराक्रम है ? यह सुनते ही अरिष्टनेमि मुस्कराने लगे और श्रीकृष्ण के पराक्रम को मानो चुनौती देने के लिए वे श्रीकृष्ण की आयुधशाला में गये। उन्होंने शाङ्ग धनुष्य को दूना कर प्रत्यंचा से युक्त कर दिया। उनके पाञ्चजन्य शंख को जोर से फूंक दिया । शंख का वह भयंकर शब्द चारों दिशाओं में व्याप्त हो गया। ऐसा मालूम होने लगा कि शंख के शब्द से पृथ्वी फटने जा रही है। हाथी और घोड़े सभी अपने स्थानों को छोड़कर भय से भागने लगे । महलों के उच्च शिखर और किनारे दनादन टूटने लग गये । श्रीकृष्ण ने जब यह शब्द सुना तो शत्र के भय से तलवार खींचकर खड़े हो गये । सारी राजसभा स्तब्ध रह गई ।६२ ___ जब श्रीकृष्ण को ज्ञात हुआ कि यह शब्द तो हमारे ही शंख का है तो वे सीधे आयुधशाला में आये। वहां अरिष्टनेमि को देखा।६३ ५६. वहीं० ५५।४४। पृ० ६२१ ५७. सपदिमुक्तजलाम्बरपीलने स्फुटकटाक्षगुणेन विलासिना । मधुरिपुस्थिरगौरवभूमिकामतुलजाम्बवतीं समनोदयत् ।। -वहीं० ५५।५८। पृ० ६२३ ५८. पुनः स्नानविनोदावसाने तामेवमब्रवीत् । स्नानवस्त्रं त्वया ग्राह्य नीलोत्पलविलोचने । --उत्तरपुराण ७१।१३४। पृ० ३८४ ५६. (क) हरिवंशपुराण ५५।५६ से ६२, पृ० ६२३ (ख) उत्तरपुराण ७१।१३५-१३६, पृ० ३८४ ६०. (क) हरिवंशपुराण ५५।६५. पृ० ६२३ (ख) उत्तरपुराण ७१।१३७ से १३६ ६१. हरिवंशपुराण ५५६६ ६२. हरिवंशपुराण ५५।६७-६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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