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________________ जन्म एवं विवाह प्रसंग ७४ मलधारी आचार्य हेमचन्द्र ने भगवान् के नामकरण के सम्बन्ध में निम्न कल्पनाए की हैं स्वप्न में माता ने रत्नमयी श्रेष्ठ रिष्टनेमि देखी थी अतः उनका नाम रिष्टनेमि रखा। भगवान् के जन्म लेने से जो अरि थे वे सभी नष्ट हो गये, या भगवान् अरियों (शत्र ओं) के लिए भी इष्ट हैं, उन्हें श्रेष्ठ फल प्रदान करने वाले हैं अतः उनका नाम अरिष्टनेमि रखा । उत्तराध्ययन की सुखबोधावृत्ति में भी ऐसा ही उल्लेख किया है। बाह्याभ्यन्तर व्यक्तित्व : ___भगवान् अरिष्टनेमि का शरीर सुगठित बलिष्ठ एवं कान्तिमान् था। शारीरिक वर्ण श्याम होने पर भी उनकी मुखाकृति अत्यन्त मनमोहक, चित्ताकर्षक, व तेजपूर्ण थी। जो भी उन्हें देखता, देखता ही रह जाता था। वे एक हजार आठ शुभ लक्षणों के धारक थे।३८ वज्र ऋषभनाराच संहनन, और समचतुरस्र संस्थान के धारक थे।३९ ३४. अभिषिच्य यथाकाममलङ कृत्य यथोचितम् । नेमि सद्धर्मचक्रस्य नेमिनाम्ना तमभ्यधात् ॥ ---उत्तरपुराण ७११४६, पृ० ३७८ ३५. वररिटुरयणमइअं जं नेमि सुमिणए निअइ जणणी । पिअराई रिट्टनेमि त्ति तेण नाम निवेसंति ।। अहवा वि अरिट्ठाइ नट्ठाई जं इमेण जाएणं । इट्टो अ अरीणं पि हु अरिट्ठफलसामलो वा वि ॥ ठावंति तेण नामं अरिट्टनेमि त्ति जिणवरिंदस्स । रूवेण य चरिएहिं आणंदिअसयलभुवणस्स ॥ -भव-भावना गा० २३४३ से २३४५ पृ० १५७ ३६. दिट्ठो रिट्ठरयणमतो नेमी सुमिणे गब्भगए इमम्मि । ___ सिवाए त्ति 'अरिट्ठनेमि' त्ति कयं पिउणा नामं ॥ -उत्तराध्ययन सुखबोध पृ० २७८ ३७. (क) ज्ञाताधर्म कथा अ० ५।५८, पृ० ६६ (ख) उत्तराध्ययन अ० २२१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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