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________________ 8. आधुनिक प्राकृत-साहित्य: राजस्थान में प्राकृत ग्रन्थों के लेखन का कार्य वर्तमान युग में भी चल रहा है। प्राचीन प्राकृत ग्रन्थों का सम्पादन, अनुवाद, प्रकाशन आदि कार्यों के अतिरिक्त जैन मुनि स्वतन्त्र प्राकृत रचनाएं भी लिखते हैं। गुजरात में विहार करते हुए मूर्तिपूजक आचार्य विजयकस्तूरसूरि ने वि. सं. 2027 में 'पाइयबिन्नाणकहा' नामक पुस्तक प्राकृत में लिखी है । इसके दो भागों में प्राकृत की 108 कथाएं लिखी गयो हैं। आधुनिक शैली में लिखी गई ये कथाएं सरल और सुबोध हैं। तेरापन्थ सम्प्रदाय के मनियों ने भी प्राकृत में रचनाएं लिखी हैं। श्री चन्दनमुनि ने बीदासर, चूरू आदि स्थानों में भ्रमण करते हुए प्राकृत में 'रयणवाल कहा' 'जयचरिअं' एवं 'णीईधम्म-सुत्तीया' ग्रन्थों की रचना की है। इनमें रवणवालकहा बहुत सुन्दर और आधुनिक कथा ग्रन्थ है। वर्षाकाल का वर्णन करते हुए कवि कहता है समत्य-जीवलोअ-तत्तिणिवारयो, णाणाविह तरु-लया-पुष्फ-फल-गुम्म-विचित्त-तणोसहिउप्पायगो, णिउजल-पएसेगजीवणाहारो, हालिएहिं अणिमिसदिट्ठीए दिट्ठिा चिरं विहीरियो उभूमो पाउसिनो कालो (र. क. पृ. 68) मुनि श्री नथमल जी ने 'तुलसीमंजरी' के नाम से प्राकृत व्याकरण प्रक्रिया की भी रचना की है जो कि अभी तक अप्रकाशित है : 9. राजस्थान के ग्रन्थ-भण्डारों में प्राकृत ग्रन्थ: राजस्थान के प्राकृत साहित्य का सम्पूर्ण परिचय तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक यहां के ग्रन्थ भण्डारों में उपलब्ध प्राकृत ग्रन्थों का विवेचनात्मक विवरण प्रस्तुत न किया जाय। ग्रन्थ-भण्डारों की जो सूचियां प्रकाशित है उनसे तथा ग्रन्थ-भण्डारों के अवलोकन से इस प्रदेश के प्राकृत ग्रन्थों का परिचय तैयार किया जा सकता है। तभी ज्ञात होगा कि राजस्थान के मुनियों,श्रावकों, राजाओं आदि ने प्राकृत साहित्य के विकास में कितना योगदान किया है। 1. नेमिविज्ञान कस्तूरसूरि ज्ञान मंदिर, गोपीपुरा, सूरत से प्रकाशित । 2. भगवत प्रसाद रणछोड़दास, पटेल सोसायटी (शाहीबाग) अहमदाबाद से प्रकाशित
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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