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________________ 1. उववाइय में 43 सूत्र है और उनमें साधकों का पुनर्जन्म कहां-कहां होता है इसका वर्णन किया गया है। इसमें 72 कलाओं और विभिन्न परिवाजकों का वर्णन मिलता है। 2. रायपसणिय में 217 सूत्र है। प्रथम भाग में सूर्याभदेव का वर्णन है। और द्वितीय भाग में केशी और प्रदेशी के बीच जीव-अजीव विषयक संवाद का वर्णन है। इसमें दर्शन, स्थापत्य, संगीत और नाट्यकला की विशिष्ट सामग्री सन्निहित है। 3. जीवाभिगम में प्रकरण और 272 सूत्र है जिनमें जीव और अजीव के भेदप्रभेदों का विस्तृत वर्णन किया गया है। टीकाकार मलयगिरि ने इसे ठाणांग का उपांग माना है। इसमें अस्त्र, वस्त्र, धातु, भवन आदि के प्रकार दिय गये हैं। ___4. पण्णवणा में 349 सूत्र है और उनमें जीव से संबंध रखने वाले 36 पदों का प्रतिपादन है--प्रज्ञापना, स्थान, योनि, भाषा, कषाय, इन्द्रिय, लेश्या प्रादि । इसके कर्ता प्राय श्यामाचार्य है जो महावीर परिनिर्वाण के 376 वर्ष बाद अवस्थित थे। इसे समवायाग सूत्र का उपांग माना गया है। वक्ष, तण, औषधियां, पंचन्द्रियजीव, मनुष्य, साद पच्चीस प्रार्यदेशों आदि का वर्णन मिलता है। 5. सूरपण्णति में 20 पाहुड, और 108 सत्र है जिनमें सूर्य, चन्द्र पौर नक्षत्रों की गति आदि का वर्णन मिलता है। इस पर भद्रबाह ने नियुक्ति और मलयगिरि ने टीका लिखी 6. जम्बदीवपण्णति दो भागों में विभाजित है --पूर्वाधं और उत्तराधं । पूर्वार्ध में चार और उत्तरार्ध में तीन वक्षस्कार (परिच्छेद) हैं तथा कुल 176 सूत्र हैं, जिनमें जम्बुद्वीप, भरतक्षेत्र, नदी, पर्वत, कुलकर प्रादि का वर्णन है। यह नायाधम्मकहानो का उपांग माना जाता है। 7. चन्दपण्णत्ति में बीस प्राभूत हैं और उनमें चन्द्र की गति आदि का विस्तृत विवेचन मिलता है। इसे उवासगदसाम्रो का उपांग माना जाता है। 8. निरयावलिया अथवा कप्पिया में दस अध्ययन है जिनमें काल, सुकाल, महाकाल, कण्ह, सुकण्ह, महाकण्ह, वीरकण्ह, रामकण्ह, पिउसेणकण्ह और महासणकण्ह का वर्णन है। 9. कप्पावडिसिया में दस अध्ययन हैं जिनमें पउम, महापउम, भद्द, सुभद्द, पउमभद्द, पउमसेण, पउमगुम्म, नलिणि गम्म, आणंद व नन्दण का वर्णन है ! 10. पुस्फिया में भी दस अध्ययन हैं जिनमें चन्द, सूर, सुक्क, बहुपुत्तिया, पुन्नमद, मणिमह, दत्त, सिव, बल और प्रणाढिय का वर्णन है। 11. पुष्फचूला में भी दस अध्ययन है--सिरि, हिरि, घिति, कित्ति, बुद्धि, लच्छी इलादेवी, सुरादेवी, रसदेवी और गन्ध देवी । 12. वहिदसाओ में बारह अध्ययन है-निसढ, माअनि, वह, वण्ह, पगता, जत्ती, दसरह, दढरह, महाषण, सत्तधणू, दसधणू और सयधणू ।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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