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________________ 361 गद्यानवाद भी आपने ही किया है। आपकी भाषा बहुत ही सम्पन्न तथा प्रांजल है। पंडितजी के दार्शनिक विचारों का दिग्दर्शन कराने वाला गद्य का एक नमूना इस प्रकार है:-- शामा में अल्पज्ञता एवं सदोषता ज्ञानावरणादिक पौद्गलिक कर्मों के सम्बन्ध से आती है। जब उनका अपने विरोधी कारणों के उत्कर्ष से अभाव- सर्वथा क्षय होता है तब प्रात्मा निर्दोष होकर सर्वज्ञ हो जाता है।" 12 पं. मिलापचन्द रतनलाल कटारिया :--आप केकड़ी के रहने वाले दिगम्बर जैन कटारिया गोत्रीय श्रावक हैं। केकड़ी जैन विद्वानों का केन्द्र रहा है और आपने सो चार चांद ही लगाए हैं। जैन साहित्य सेवियों में इन पिता-पुत्र के जैसे कम ही देखने को मिलेंगे। दोनों ही संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा हिन्दी के अच्छे विद्वान, सिद्धान्त, पुराण. कथा-चरित्र, व्याकरण, दर्शन, पूजा विधान आदि सभी विषयों के ज्ञाता, सफल समालोचक एवं अधिकारी लेखक हैं। आप दोनों के अच्छे लेखे अनेक पत्र-पत्रिकाओं में निकलते हैं। आपके अनेक शोधपूर्ण निबन्धों का संकलन "जन निबन्ध रत्नावली" में निकल चका है। इसे वीर शासन संघ, कलकत्ता ने अप्रैल, 1966 में प्रकाशित कराया है। 13. श्री भंवरलाल पोल्याका :--पोल्याका जी का जन्म जयपुर में सन 1918 में श्री पारसमलजी पोल्याका के यहां हआ। आपकी शिक्षा जैन संस्कृत कालेज में हुई जहां से आपने जैन दर्शनाचार्य तथा साहित्य शास्त्री की परीक्षाएं उत्तीर्ण की। आप कुशल वक्ता, लेखक और समालोचक हैं। जयपर से प्रकाशित होने वाली "महावीर जयन्ती स्मारिका" के आप कई वर्षों से प्रधान सम्पादक आपकी भाषा लालित्य व प्रसादगुण युक्त होती है। तमिल भाषा का जैन साहित्य" पुस्तक जो आपके द्वारा लिखित है, प्रकाशित हो चुकी है । 14. पं. वंशीधर शास्त्री :--आपका जन्म अाज से करीब 40 वर्ष पूर्व चौम् में हा। आपका अध्ययन पंडित चैनसुखदासजी के सानिध्य में हुआ। शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आपने एम. ए. तथा साहित्यरत्न की परीक्षा उत्तीर्ण की। आपके खोजपूर्ण लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं। आप अधिकतर समालोचनात्मक लेख लिखते हैं। आप आजकल बारह भावना तथा बारह मासा साहित्य पर कार्य कर रहे हैं। 15. पं. श्री हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री :--पं. हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री मध्यप्रदेश के निवासी हैं लेकिन गत 15-20 वर्षों से वे राजस्थान में रहते हए जैन साहित्य की अपूर्व सेवा कर रहे हैं। सर्व प्रथम 'जयधवला' की हिन्दी टीका में उन्होंने प्रमुख योग दिया। 16. श्री नाथूलाल जैनः--श्री नाथूलाल जैन कोटा निवासी हैं तथा हिन्दी के अच्छे लेखक एवं कवि हैं। आप भाषा आयोग के सदस्य भी रह चुके हैं। उक्त जैन हिन्दी विद्वानों एवं लेखकों के अतिरिक्त डा. लालचन्द जैन बनस्थली. डा. गंगाराम गर्ग भरतपूर, महावीर कोटिया जयपुर, श्रीमती सुशीला देवी बाकलीवाल, श्रीमती सुदर्शन छाबड़ा जयपूर, श्रीमती सुशीला कासलीवाल, पं. सत्यन्धरकुमार सेठी, श्रीमती
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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