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________________ 244 [गमाधिकार: आगमों की संख्या के बारे में जैन सम्प्रदाय में पर्याप्त मतभेद हैं। इस कृति में प्रागमों की संख्या को लेकर प्रामाणिक जानकारी देने का प्रयास किया गया है। प्रागमों के प्रक्षिप्त पाग को तर्कसंगत ढंग से अमान्य भी ठहराया गया है। इण्डियां: जयाचार्य की चार हुण्डियां मिलती हैं। निशीथ री हुण्डी, बृहत्कल्प री हुण्डी, व्यवहारी री हुण्डी तथा भगवती री हुण्डी। इन हुण्डियों से संबंधित चारों सूत्रों का मर्म समझने की दृष्टि से इनमें उनका विषयानुक्रम प्रस्तुत किया गया है। ये हुण्डियां वस्तुत: इन सूत्रों की कुजी सदृश उपयोगी हैं। सिद्धान्तसार: ये तुलनात्मक टिप्पणी-परक गद्य रचनाएं हैं। भिक्षु स्वामी ने अपनी कृतियों में जिन विवादास्पद विषयों को प्रागमों के संदर्भ में लिया था. जयाचार्य ने उन कतियों में विषयों पर अनेक प्रमाण प्रस्तुत करते हए तुलनात्मक टिप्पणीयक्त सिद्धान्तसार लिखे थे। कुछ सिद्धान्तसार लघु व बडे दोनों प्रकार के हैं। कुछ केवल लघु और कुछ केवल बडे ही मिलते साधनिका:-- सारस्वत-चन्द्रिका व्याकरण ग्रन्थ को समझने के लिये इस गद्य कृति का राजस्थानी में निर्माण किया गया है। इसमें कठिन स्थलों को सरलतम एवं सूत्रबद्ध तरीके से समझाया गया है। पत्रात्मक गद्य:-- पत्र समकालीन इतिहास व परिस्थितियों के बारे में काफी पलभ्य सामग्री उपलब्ध कराते हैं। वस्तुतः ये व्यक्ति के मानस के प्रतिबिम्ब को समझने के अच्छे साधन हैं। जयाचार्य के ऐसे अनेकों पत्र मिलते हैं, जिनका ग्रन्थाग्र 1501 है। ये पत्र विभिन्न समयों में लिखे हुए हैं तथा ये शिक्षात्मक, समाधानात्मक एवं घटना प्रधान सामग्री से परिपूर्ण हैं। 6. हरकचन्द जी स्वामी: ये गांव अटाटिया जिला उदयपुर (मेवाड) के निवासी थे। वि. सं. 1902 में जयाचार्य से दीक्षा ग्रहण की थी। तेब्बीस वर्ष साधु जीवन पालने के पश्चात् वि. सं. 1925 में इनका स्वर्गवास हमा था। जयाचार्य से जब उनके उत्तराधिकारी का नाम पूछते थे तो वे तीम नाम छोग, हरक, मघराज बताते थे। उनमें इनका नाम भी था। इनकी राजस्थामी गद्य में चरचा शीर्षक कृति मिलती है। इसमें व्रत-अवत, शुभ जोग, प्रशुभ जोग, साधु जीवन, सवर धर्म, कार्य का कर्ता मादि पर चर्चाएं हैं। प्राचार्य काल गणी: भष्टमाचार्य काल गणी का जन्म बीकानेर संभाग के छापर गांव में बि. सं. 1933 की काल्गुण शुक्ला द्वितीया को हुमा। भापका जन्म नाम शोभचन्द पोर माता-पिता द्वारा प्रद
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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