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________________ 225 27. स्वरूपचन्द मुनि: संवत् 1910 में लिखी गई एक रचना चौंसठ ऋद्धि विधान पूजा जैन मन्दिर निवाई में प्राप्त है। 28. सवाईरामः-- इनकी एक रचना 'जगतगुरु की वीनती' चौधरियान मन्दिर टौंक के ग्रन्थांक 102 व के पृष्ठ 67 पर अंकित है । 29. सुगनचन्द:-- यह जीवराज बडजात्या के पुत्र थे। इनकी माता गंगा और भाई मगनलाल, सज्ञान. बख्तावर और हरसूख थे। यह अपने पिता के मझले पुत्र थे। इन्हें छंद और व्याकरण का अच्छा ज्ञान था। इन्होंने जिनभक्ति की प्रेरणा से 'रामपुराण' ग्रन्थ की रचना की। 30. चन्द:-- चन्द नाम से दो रचनायें चोईस तीर्थाकरां की वीनती तथा चौईस तीर्थाकरां की समच्चय वीनती, तेरहपंथी मन्दिर टौंक के गटका नम्बर 100 ब में पृष्ठ 102-121 पर संग्रहीत है। 31. दीपचन्द शाहः-- इनकी प्रमख रचना 'ज्ञान दर्पण' जैन मन्दिर निवाई में ग्रन्थ संख्या 33 पर उपलब्ध है। इसमें कवि ने दोहा, कवित्त, सवैया, अडिल्ल , छप्पय आदि 196 छन्दों में अध्यात्म की चर्चा की है। दीप उपनाम से 12 दोहे और कुछ पद तेरहपंथी मन्दिर टौंक के गटका नं. 50 ब में संग्रहीत हैं। 32. महेन्द्रकीतिः-- यह सांगानेर रहते थे। इनकी एक रचना 'धमालि' तेरहपंथी मन्दिर टॉक गटका नं. 50ब में संग्रहीत है। 33. विश्वभूषण इनकी दो रचनायें श्री गुरु जोगी स्वरूप गीत और मुनीश्वरां की बीनती, तरहपंथी मन्दिर टौंक के गटका नं. 50 ब में संग्रहीत है। इनके कुछ पद भी दिगम्बर जैन शोध संस्थान जयपूर में उपलब्ध हैं। उक्त विवेचन के आधार पर स्पष्ट है कि 18-20 वीं शताब्दी के मध्य परिनिष्ठित राजस्थानी तथा ढंढाडी (राजस्थानी तथा ब्रज भाषा का सम्मिलित रूप ) में अनेक कवियों द्वारा विशाल साहित्य का सृजन हुआ। समृद्ध साहित्य भण्डारों में खोजे जाने पर कई अज्ञात कवि तथा ज्ञात कवियों की अज्ञात रचनाएं उपलब्ध हो सकती हैं। राजस्थानी तथा हिन्दी साहित्य के इतिहास में पालोच्य काल के कई प्रमुख कवियों, भट्टारक नेमिचन्द्र, ब्रह्म नाथ, दौलतराम नवल, बुधजन, पावदास का उचित प्रतिनिधित्व नितान्त प्रायोजित एवं न्याय संगत है।
SR No.003178
Book TitleRajasthan ka Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherDevendraraj Mehta
Publication Year1977
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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