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________________ ५४ तत्त्वज्ञान स्मारिका (१) परिमण्डल संस्थान-मण्डलाकार में | होते हैं। देखिए पृ. ५३ की तालिका-यहाँ अवस्थित वलयाकार परिमण्डल संस्थान कह- *ओजः प्रदेश से तात्पर्य है और युग्म प्रदेश से लाता है । (३) तात्पर्य है सम । (२) वृत्त संस्थान-कुलाल के चक्र की तरह । १-(क) युग्मप्रदेश-प्रतर-परिमण्डलऔर भीतर से पूर्ण अर्थात् अन्दर से कोई भी | बीस आकाश प्रदेशों को घेरनेवाले परमाणु भाग रिक्त न हो तो वह वृत्त पुद्गल संस्थान | पुद्गल संस्थान युग्मप्रदेश–परिमण्डल कहकहलाता है । जैसे-* लाता है। (३) व्यस्र-सिंघाड़े के रूप को धारण । चारों दिशाओं में चार चार परमाणु रखे करनेवाला व्यस्र-त्रिकोण पुद्गल-संस्थान | जाय और विदिशाओं में एक एक परमाणु रखा कहलाता है । (४) जाय तो उक्त संस्थान बन जाता है । (६) (४) चतुरस्र-कुम्भिका आदि की तरह __ (स्व) युग्मप्रदेश घन--परिमण्डल-युग्मप्रतर चार भागों से सन्निविष्ट चतुरस्र-संस्थान कह परिमण्डल के ऊपर हो बीस और परमाणुओं को लाता है। रखा जाय तो युग्म-घन- परिमण्डल संस्थान (५) + आयत-दण्ड की भान्ति लम्बा कहलाता है । (७) कार लिये हुए पुद्गल-आयत-संस्थान कह २-(क) ओजः-प्रदेश-प्रतरवृत्त-पांच लाता है । (५) अणुओं से उत्पन्न उक्त संस्थान बन जाता है । इन संस्थानों में आयत के तीन भेद होते क्योंकि वह पाँच आकाश प्रदेशों को घेरे हैं- * श्रेणी, x प्रतर और ° घन । अन्य | हुए रहता है । इसके चारों दिशाओं में एक चार संस्थानों में प्रत्येक के दो दो भेद प्रतर | एक परमाणु प्रतिष्ठित रहता है और एक मध्य और घन होने से कुल ग्यारह भेद होते हैं। भाग में स्थित रहता है। ८ परिमण्डल संस्थान को छोडकर अन्य चारों । (ख) युग्म-प्रदेशप्रतरवृत्त-बारह प्रदेशों संस्थानों के प्रतर और धन भेदों के भी क्रमशः को अवगाहित किये हुए बारह परमाणुओं का ओज प्रदेश तथा युग्म प्रदेश नामक दो दो भेद । युग्म-प्रदेश प्रसरवृत्त कहलाता है । + आयत लम्बा इति भाषा (आङ्+यम्+ल:) विस्तृतः, विशाल आकृष्ट वा । * श्रेणी : पुं० स्त्री (श्रयति श्रीयते वा) पंक्ति : विलोली० वीथी आलिः राजिः रेखाका x प्र+तृ भाव अप् प्रकपंग तरणे आधारे प्रवरणाधारे • पुं० हन् मूर्ती, अम् घनादेशश्च, मेघे, मस्तके, समूहे दीघे, विस्तरे च वाचस्वत्यम् द्वि० भाग, प्रिंट-१९६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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