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________________ देवलोक की सृष्टि उपरोक्त वर्णन जैन शास्त्रों में वर्णित देव- वैज्ञानिक श्री जगदीशचन्द्र बसु ने 'क्रेस्कोग्राफ' लोक के समान है। | (Crescograph ) यंत्र का आविष्कार किया । परामनोविज्ञान की इन खोजों ने देवलोक यह यंत्र पेड़-पौधों एवं वनस्पति के विकास आदि लोकों के प्रति विश्वास उत्पन्न कर दिया है। एवं सुख-दुःख को अनुभूति का बोध कराते है। ' श्री कल्पसूत्र में यह वर्णन है कि- | इस आविष्कार ने आधुनिक वैज्ञानिकों को श्री देवेन्द्र ने बाल प्रभु को मेरु पर्वत पर आश्चर्यविभूत कर दिया था। ले जताते हुए अपने पाँच रूप बनाये थे--यह मानव की उपरोक्त वर्णित सुंदर ग्रहों एवं देवों के लिए सहज है। उपग्रहों में पहुंचने की चिरकालीन अभिलाषा देव इच्छानुसार मनोवांछित रूप धारण | हैं । वैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधानों द्वारा यह कर सकते है। बताया है कि-- __माता त्रिशला को अवस्वापिनी नींद में | ____ यदि मनुष्य ५ मील प्रति सेकण्ड की गतिसुलाना विज्ञान को दृष्टि में सामान्य बात हैं। | वाले रॉकेट में बैठकर जाय, तो भी सब से ____ क्लोरोफार्म जैसी औषधियों के सूंघने से | करीब के तारे ‘प्राक्सिमा सेंटारी' तक पहुंचने तुरन्त बेसुधी आती है। में उसे ८०,००० (अस्सी हजार) साल चिकित्सा विज्ञान में ऐसी औषधियों का लगेंगे। प्रयोग सामान्य बात है। इसी से मानव का गर्व खर्व हो जाता है। श्री जिनेश्वरदेव भाषित एवं श्री गणधर अतः मनुष्य को चाहिये कि प्राणीमात्र के रचित शास्त्रों में जो वर्णन है, वह पूर्ण सत्य है। प्रति प्रेम भाव रखता हुआ सदाचार के शिवपथ विज्ञान की ज्यों-ज्यों खोजें हो रही हैं त्यों-त्यों | पर चलें और इहलोक और परलोक को सुधारें। जिन वाणी का सत्य उजागर होता जा रहा है। - वनस्पति आदि में जीवन होता है। ___ वह वैज्ञानिक खोजों द्वारा प्राणीमात्र के जैन धर्म की इस मान्यता पर पाश्चात्य, कल्याण की भावना करें। विद्वानों ने शंका की थी। किन्तु भारत के प्रसिद्ध । ॥शिवमस्तु सर्वजगतः ।। ६. लेख-दूसरे ग्रहों से संदेश आ रहे है : लेखक-रामभूति; धर्मयुग १४ अक्टू. १९७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003177
Book TitleTattvagyan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherVardhaman Jain Pedhi
Publication Year1982
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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