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________________ ३ सता जैसी/>व श्रीविजयानदंसूरिकृत [१ जीवनाम कृष्ण लेश्या । नील लेश्या कापोत लेश्या तेजोलेश्या पद्म- शुक्ल लेश्या २ ३ ४ लेश्या५६ रस द्रव्य- कटुक उंब १ नींब २ यथा त्रिकूट रस तरुण आम्ररस पक्क आम्र घर यथा खजूर लेश्या अर्कपत्र इसके १ हस्ती पीपलना कचा केविट रस १ वारुणी रस १ आश्री | रससे अनंत गुण रस एहथी अनंत फल रस पाका कौठ मद १ द्राख रस २ कटुक रस गुणाधिक इनथी अनंत फल २ रस पुष्पका खंड रस ३ गुणा कषायला इनसे अनंत मद२ मिसरी रस है गुणाधिका मधु मद्य रस इनसे विशेष ३ अनंत गुणा सिरका इनसे अनंत गुणा गंध मृतक गौ १ मृतक पूक सुगंधद्रव्य- श्वान २ मृतक सर्प वत् तथा ए लेश्या | ३ इनके दुर्गध से >व सुगंध पीआश्री अनंत गुणाधिक सुगंध इनसे म् अनंत गुणा स्पर्श | करवतनी धार १ | यथा दूर | द्रव्य- | गौ जिह्वा २ साम वनस्पति ए ए लेश्या वनस्पतिना पत्र | म्रक्षण २ आश्री इनके स्पर्शसे अनंत शिरीष कु- चव कर्कश स्पर्श सुम इनसे अनंतसा कोमल है जघन्य १ मध्यम २ परिणाम उत्कृष्ट ३ इनका ९ समुच्चय फेर २७ फेर ८१ फेर २४३ इस तरे व असंखवे २ करणा नियमन करणाके इतने परिणाम है लक्षण । २१ बोल १५ बोल । १२ बोल । १३ बोल १२ बोल १८ बोल विशिष्ट । पांच आश्रवना ईर्ष्या-पर गुन वांकां वोले १ नीचा वर्ते पतले आर्त रौद्र लेश्यानी | सेवनहार ५ तीन असहन १ अभि- वक्राचारी २ १ अचपल क्रोध १ वर्जे २ धर्मअपेक्षा गुप्तिये अगुप्ति ३ निवेशकी १ तप निवडमाया ३२ अमाइ ३ मान २ ध्यान ३ इह षटकायना अविरति रहित १ कुशास्त्री असरल ४ अकुतूहल ४माया ३ शुक्ल ध्यान लक्षण है। तीव्र आरंभी १ । १मायावी १ | अपने दोष विनयवंत ५लोभ ४ ध्यावे ४ १ कोठ। तेव 个 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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