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________________ तत्त्व] नवतत्त्वसंग्रह १९९ (१५०) आपसमे नियम भजनेका यत्र औदारिका तैजस वैक्रिय आहारक कार्मण नथी औदारिक सर्व नथी नथी भजना भजना देश ३ वैक्रिय सर्व १, नथी देश २ आहारक सर्व १, देश २ तैजस देशबन्ध १ नियमा नियमा नियमा कार्मण देशबन्ध १ नियमा (१५१) अल्पबहुत्वयन्त्रम् अल्पबहुत्व देशबन्ध सर्वबन्ध अबन्धक औदारिक असंख्य अनंत ६ विशे०७ वैक्रिय असंख्य ३ आहारक संख्यात २ स्तोक १ विशे० ९ अनंत ५ कार्मण तुल्य , तुष्य , तेरह बोलकी अल्पबहुत्व संपूर्ण (१५२) आपआपनी अल्पबहुत्व औदारिक १ स्तोक ३ असंख्य २ विशे० वैक्रिय ३ अनंत आहारक २ संख्येय ,, असंख्य १ स्तोक कार्मण । १ स्तोक । २ संख्येय इति श्रीभगवत्यां सर्ववन्ध देशबन्ध अधिकार शते ८, उ०९ और विशेष खरूप टीकासे जानना. किस वास्ते ? थोडे घणे है टीकामे स्वरूप कथन कीया है. "जीवा १ य लेस्स २ पक्खी ३ दिही ४ अन्नाण ५ नाण ६ सन्नाओ ७। वेद ८ कसाय ९ उवओग १० जोग ११ एगारस जीवट्ठाणा ॥१॥" गाथा है भगवती श० २६ (उ०१). १ छाया-जीवाश्च लेश्याः पक्षी दृष्टिरज्ञानज्ञानसज्ञाः । वेदः कषाय उपयोगो योग एकादश जीवस्थानानि ॥ । तेजस , अनंत . . - आयुकर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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