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________________ ashegho श्रीविजयानंदसूरिकृत [७ निर्जराकरमको घेरे गेरे नाना कछु नही तेरो मात तात भ्रात तेरो नाही कर चूप है चिदानंद सुषकंद राकाके पूरन चंद आत्मसरूप मेरे तूही निज भूप है १ आथ साथ नाही चरे काहेकू गेरत गरे संगी रंगी साथी तेरे जाथी दुख लहिये एक रोच केरो तेरो संगी साथी नही नेरो मेरो मेरो करत अनंत दुष सहिये ऊपरमे मेह तैसो सजन सनेह जेह पेहके बनाये गेह नेह काहा चहिये। जान सब ज्ञान कर वासन विषम हर इहां नही तेरो घर जाते तो सो कहिये २ इति अथ 'अन्य' भावनातेल तिल संग जैसे अगनि वसत संग रंग है पतंग अंग एक नाही किन्न है करमके संग एक रंग ढंग तंग हूया डोल तस छंद मंद गंद भरे दिन्न है दधि नेह अभ्र मेह फूलमे सुगंध जेह देह गेह चित एह एक नही भिन्न है आतमसरूप धाया पुग्गलकी छोर माया आपने सदन आया पाया सब घिन्न है ? काया माया वाप ताया सुत सुता मीत भाया सजन सनेही गेही एही तासो अन्न है ताज वाज राज साज मान गान थान लाज चीत प्रीत रीत चीत काहुका ए धन है। चेतन चंगेरो मेरो सबसे एकेरो होरे डेरो हुं वसेरो तेरो फेरे नेरो मन्न है। आपने सरूप लग माया काया जान ठग उमग उमग पग मोषमे लगन है २ अथ 'अशुच(चि) भावनापट चार द्वार पुले गंदगीके संग झुले हिले मिले पिले चित कीट जुं पुरीसके हाड चाम खेल घाम काम आम आठो जाम लपट दपट पट कोथरी भरी सके गंदगीमे जंदगी है बंदगी करत नत तत्त वात आत जात रात दिन जीसके मैली थेली मेली वेली वैलीवद फैली जैली अंतकाल मूढ तेऊ मूए दांत पीसके १ जननीके खेत सृग रेतको करत हार उर धर चरन करी धरी देह दीन रे सातो धात पिंड धरी चमक दमक घरी मद भरी मरी परी करी वाजी छीन रे प्रिये मीत जार कर छर न मे राख कर आन वेठे निज घर साथ दीया कीन रे छरद करत फिर चाटत रसक अत आतम अनूप तोहे उपजेना धीन रे २ अथ 'आश्रव' भावनाहिंसा झूठ चोरी गोरी कोरी केरे रंग रसो क्रोध मान माया लोभ षोभ घेरो देतु है राग द्वेष ठग भेस नारी राज भत्त देस कथन करन कर्म भ्रमका सहेतु है चंचल तरंग अंग भामनिके रंग चंग उद्गत विहंग मन अति गर भेतु है मोहमे मगन जग आतम धरम ठग चले जग मग जिय ऐसें दुष लेतु है ? नाक कान रान काट वाटमे उचाट ताट सहे गहे बंदी रहे दुख भय मानने जोग रोग सोग भोग वेदना अनेक थोग परे विल लाये दुख लीये पीये जानने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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