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________________ सस्व] नवतत्त्वसंग्रह १०३ ९।११ श२ २/३/७/६६६६६६६६ ३।४ ३ ८ ७७ १११११११ ए ५६ ८१०१२१२/१२ २/२२/२३ क ७८ ९ १७१३१३१३ गोत्रके सात भंग है-सो पहिला तेजस्काय वायु१२।१३ १६ कायमे दुजा मिथ्यात्व सास्वादनमे; तीजा मिथ्यात्व १४.१५ १७२६१६ वं १६१७ सास्वादनमे चौथा १मे, २मे, ३मे, ४मे, ५मे पांचमा १८/२० भंग एकसे दस तक गुणस्थानोमे छठा उपशमथी अयोगी द्विचरम समय; ७ मा अयोगीके अंत समयमे कहो. अथ २३२४ ए ही, ए २५।२६ व शे वं सुगमताके वास्ते यंत्र लिख्यते२७।२८ १२ ष १२ अंकसंख्या १ २ ३ ४ ५ ६ ७ एवं २६; न २० है. बंध नीच नीच नीच उंच उंच ० ० | १०११९ उदय उंच उंच 'च नीच नीच सत्ता उंच उंच उंच उंच २१।२२ २६ न दो नही ही, है. ६४ गोत्रके भंग अंतराभंग . ६६ एक जीव रज्जु १४ स्पर्श रजु रज्जु रज्जु रज रजु NE दूजे गुणस्थानवाला बारां रज्जु स्पर्शे तिसकी युक्ति लिख्यते-'स्वयंभूरमण' समुद्रके पश्चिमका मत्स्य सास्वादनवाला मरीने सातमी नरककी पृथ्वीमे अथवा घनोदधिमे समश्रेणि जाइने पीछे तिरछा पूर्वकू जावे साढे तीन रजु, पीछे कूणेमे जावे अढाइ रज्जु, एवं १२ रज्जु होइ घनोदधिमे वा पृथ्वीमे उपजे. तथा चोक्तं पश्वसङ्ग्रहे (द्वितीये बन्धकद्वारे गा०३२)गाथा "छट्ठाए (छट्ठीणं ?) नेरइउ(ओ) सासणभावेण एइ तिरिमणुलो]ए । लोगंतनिक्खुडेसु जंतते (तिन्ने) सासणगुणहा(त्था) ॥" १ छाया-षष्ट्या नैरयिकः साखादनभावेन एति तिर्यड्मनुष्ये(७)। लोकान्तनिष्कूटेषु यान्त्यन्ये साखादनगुणस्थाः॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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