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________________ ७७ देव नाम REFERE POETEEEEE | हजार अ लके पूर्व उ० देश पुद्गल तत्त्व] नवतत्त्वसंग्रह (७२) भगवती श० १२, उ०९ (सू० ४६१-४६६), पंच देव पंच गुण आग तिर्य- मनु- देवगति स्थिति रूप काल संतिष्ठन अं | अल्प- | अव विकु- करा काय- त बहुत्व गाह कहा जावे स्थिति र ना भव्य युग- सर्वार्थ- ज० अंत- ज०४ जा-ज० अंत-ज० दश ४. ज० अंगुद्रव्य | सिद्धि मुहूर्त; १,२,३ तके मुहूर्त; हजार वर्जी २५ उ० तीन उ० देव- उ० तीन असंख्य देवलो- पल्योपम असं- तामे पल्योपमा ख्या भागः कादि उ० उ० वनस्पति हजार काल योजनकी सर्व देव-ज० सात ज०७०० ज०१ ज०७ तानो सो वर्षः । न वर्ष: उ० सागर आव्यो उ० चार- त्यागे ८४ लक्ष झझेराः स्तोक लक्ष पू- अ उ० ५०० चैनी ऊन अर्ध धनुः ध्यकी . धर्म- साधु युग- वैमानिक ज० अंत वैमा- ज०१ ज० पृथ- ३ ज०१ वायुला प्रमुख मुहूर्त, निक- समय; कपल्यो संख्या | हाथ नरक वर्जा ने शेष सर्व ४ उ० देश , मे उ० देश पम; उ० त झझेरी 'ऊन ऊन पूर्व तथा ऊन पूर्व उ०५०० आवे कोटि मोक्षे कोटि पुद्गल ज०७२ शक्ति मुक्ति- ज०७२ ज०७ वर्ष उ० तो है, वर्षेउ० हस्तकी वैमा८४ लक्ष परंतु ८४ लक्ष गुणा | उ०५०० निकधी पूर्वनी विकुर्वे नही ष्यकी ज० दस ज० पृथ्वी ज० दस ५०० ध. ५ ज०१ हजार १,२, अप् हजार नुष्यकी अ हस्तकी वर्ष; उ० उ० वनः वर्ष; उ० ज० अंत- सं उ०७ अ. पति ३३ सा- मुहूर्तः | ख्या हाथ; गरोपम संख्य M गरोपम उ० वन- त उत्तर स्पति- गु वैक्रिय लाख प्यमे योजन जोगायाओ वि०, वीरियायाओ वि उवयोगदवियदसणायाओ तिन्नि वि तुल्लाओ वि०" भगवती सू०.४६७.. १ एकमां। अध Emo धनुष्य REEEEE EENET - Asi धनु T tivation ३३ सा काल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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