SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ →* ग्रन्थप्रणेतानी जीवनरेखा: आर्हत शासनना शृङ्गाररूप, अने अमूल्य ग्रन्थोना विधाता, जैनाचार्य न्यायाम्भोनिधि विजयानन्द सूरीश्वरनुं रोचक, सार्थक अने बोधदायक जीवनचरित्र अत्यार सुधीमां विविध स्थळेथी विबुधोने हाथे आलेखायेलं होवा छतां आ स्वर्गस्थ महात्माना गुणानुवाद गाइ मारा जीवननी क्षणोने सफळ करुं एवी अभिलाषाथी तेमज आ ग्रंथनुं संपादनकार्य स्वीकारती वेळा ग्रन्थप्रणेतानी जीवनदिशा दर्शाववानी करेली प्रतिज्ञाना पालनार्थे हुं मारी मन्द मति अनुसार आ महामंगलकारी कार्यमां प्रवृत्त थाउं छु. आ प्रसिद्ध जैन महर्षिनो जन्म आजथी ९४ वर्ष उपर एटले वि. सं. १८२३ ना चैत्र मासना शुक्ल पक्षमां प्रतिपदा गुरुवारे, पंजाबना जिल्ला फिरोजपुरनी तहसील जीरामां आवेला 'लेहरा' गाममां थयो हतो. 'कपूर ब्रह्मक्षत्रिय' जातिना अने सामान्य स्थितिना गणेशचन्द्रनी धर्मपत्नी रूपादेवीने एमनी माता थवानो अद्वितीय प्रसंग प्राप्त थयो हतो. आ गुणज्ञ दंपतीए आत्माराम एवं एमनुं शुभ नाम पाडी आनंद अनुभव्यो हतो. जन्मसमयथी ज एमनां सौन्दर्यने अलोकिकता वरेली हती. एमना वदनकमलना दक्षिण भागमांनुं रक्तिमापूरित चिह्न सुवर्णभूमिकामां पद्मराग मणिना जेवुं कार्य करतुं हतुं. एमना पिताश्री विशिष्ट प्रकारनी विद्वत्ताथी विभूषित न हता तेमज एमना जन्मस्थळमां कोइ पाठशाळा पण न हती; तेथी बालक्रीडामां लगभग दश वर्ष एमने व्यतीत करवां पड्यां. एवामां एक ग्रामीण पंडित पासे एमने हिंदी भाषानो अभ्यास करवानी तक मळी. परंतु शिक्षानी प्रारंभिक दशामां ज पिता परलोकवासी बन्या, जोके त्यार बाद एमना पिताना 'जीरा' निवासी अने 'ओसवाल' जातीय सन्मित्र जोधाल एमने पोताना गाममां अभ्यासार्थे लइ गया. आ वखते एमनी उम्मर चौद वर्षनी हती. पिताना सदाना वियोगे एमना विचारोमां पुष्कळ परिवर्तन पेदा कर्यु. पदार्थोनी यथार्थ स्थितिनुं एमने भान थवा लाग्यं. वैराग्यरंगथी एमनुं हृदयक्षेत्र रंगायुं अने एणे जीवनपलटानुं कार्य कर्यु. 'जीरा' मां ढुंढक पंथना साधुओनी साथेना विशेष परिचयथी एमणे १७ वर्षनी सुकुमार वये, ए फिरकाना श्रीयुत जीवनराम साधु पासे 'मालेरकोटला' मां ढुंढक मतनी दीक्षा अंगीकार करी. भोगी मटी एओ योगी बन्या. आ प्रमाणे एमनी स्थितिमा - आत्मोन्नतिना क्षेत्रमां परिवर्तन थयुं, परंतु नाम तो तेनुं ते ज राखवामां आव्युं. एमनी प्रतिभानो प्रभाव एटलो बधो हतो के तेओ रोज बसे त्रणसे श्लोको कंठस्थ करी शकता. आथी एमणे टुंक समयमा 'ढुंढक' मतने मान्य बत्रीसे सूत्रो कंठस्थ करी लीधां. वीस वर्षनी उम्मरमां तो 'ढुंढक' मतनां रहस्यभूत तत्त्वोथी एओ पूर्ण परिचित बनी गया. थोडा वखत पछी 'रोपड़ निवासी पंडित श्रीसदानंद अने 'मालेरकोटला 'ना वासी पंडित श्रीअनंतराम पासे एमणे व्याकरणनो अभ्यास कर्यो. त्यारबाद 'पट्टी' निवासी पंडित श्रीआत्माराम पासे न्याय, सांख्य, १ आ सर्वमां मुनिरन श्रीवल्लभविजय ( अत्यारे श्रीविजयवल्लभसूरि तरीके ओळखाता ) ने हाथे आलेखायेलुं भने तत्वनिर्णयप्रासादमां प्रसिद्ध थयेलं जीवनचरित्र विशेषतः मननीय जणाय छे. २ एमनी जन्मकुंडळी माटे जुओ तत्त्वनिर्णय० (पृ. ३५). ३ एना वंशवृक्ष माटे जुओ तस्वनिर्णय० (पृ. ८४ ). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003176
Book TitleNavtattvasangraha tatha Updeshbavni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
PublisherHiralal R Kapadia
Publication Year1931
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy