SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रावक धर्म-अणुव्रत (२) मृषावाद विरमण व्रत (३) अदत्तादान विरमण व्रत (४) ब्रह्मचर्य व्रत और (५) परिग्रह परिमाण व्रत इन पांचव्रतों के पालने में तीन गुणब्रत, और चार शिक्षाबत बताकर बारह ब्रत नाम प्रसिद्धि में आया । प्रत्येक ब्रत के पालने में गुणब्रत की आवश्यकता होती है (१) दिकपरिमाण (२) भोगोपभोग परिमाण (३) और अनर्थदण्ड विरमण, यह गुणब्रत बताये और शिक्षाबत में (१) सामायिक (२) देशावगासिक (३) पौषध और (४) अतिथि संविभाग बताकर समझाया कि जो ऐसे व्रत ग्रहण करता है वह श्रावक कहलाता है । इस प्रकार के व्रत लेने वाले भगवन्त परमात्मा के समय में एक लाख उनसठ हजार श्रावक, और तीन लाख छत्तीस हजार श्राविकाएँ थी, जो जिन भगवान के श्रावक कहलाते थे। श्रावकों के लिए कई ग्रन्थ रचनाएं हुईं, टीकाएं, भाषानुवाद आदि से समझने के लिए सुगमता करदी और यह भी बताया कि भगवन्त के दश श्रावक आनन्द आदि जो उत्कृष्ट पालन करने वाले धनपति थे और गोकुल के प्रमाण से गायों को पालते थे। जिनके एक गोकुल में दस हजार गायें रहती थीं । इस प्रकार की सम्पत्ति वाले Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003175
Book TitleShravak Dharma Anuvrata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherChandanmal Nagori
Publication Year
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, C005, M000, & M020
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy