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________________ श्रावक धर्म - अणुव्रत ग्यारहवां पौषध व्रत - ५१ प्रति वर्ष आठ पहर या चार पहर के कितने पोषध करना जिस की संख्या निर्धारित करना । वैसे पौषध वा सामान्य अर्थ और प्रकार इस तरह है । 1. (१) आहार पौषध - देश से एकासना आयंबिल करके करना । ( २ ) शरीर सत्कार पौषध - शरीर का सत्कार नहीं करना । (३) व्यापार पोषध - संसार के सारे व्यापार बंध करना । (४) ब्रह्मचर्य पौषध - ब्रह्मचर्य पालन करना - पौषध में चार प्रकार के व्यापार का त्याग होता है प्रथम आहार पौषध में देश से एकासना, आयंबिल और उपवास करके किया जाता है । इस व्रत के पांच प्रतिचार (१) प्रतिलेखित शैया सोने की जगह और बिछाने का संथारिया की पडिलेह बराबर न की हो । (२) प्रमार्जित - दुष्प्रमार्जित शैया संस्तारक बराबर पुजा न हो प्रमार्जित न किया हो (३) प्रतिलेखित - दुष्प्रतिलेखित - स्थंडिल जाने की जगह बराबर पडिले न की हो (४) अप्रमार्जित - दुष्प्रमा Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003175
Book TitleShravak Dharma Anuvrata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherChandanmal Nagori
Publication Year
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, C005, M000, & M020
File Size3 MB
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