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________________ ५४ भगवती सूत्र : एक परिशीलन रह जाता है, अन्तर्मानस को स्पर्श नहीं करता । दण्ड पाकर भी कदाचित् अपराधी अधिक उद्दण्ड होता है, जबकि प्रायश्चित्त में अपराधी के मानस में पश्चात्ताप होता है। भूल करना आत्मा का स्वभाव नहीं अपितु विभाव है। जैसे शरीर में फोड़े, फुन्सी हो जाते हैं। वे फोड़े, फुन्सी शरीर के विकार हैं, वैसे ही अपराध मानव के अन्तर्मन के विकार हैं। जिन विकारों के कारण मानव अपराध करता है, उन्हें शास्त्रीय भाषा में प्रतिसेवन कहा है। भगवती ३५ और स्थानांग १३६ आदि में प्रतिसेवन के दस प्रकार बताये हैं-दर्प, प्रमाद, अनाभोग, आतुर, आपत्ति, शंकित, सहसाकार, भय, प्रद्वेष और विमर्श । प्रायश्चित्त के दस प्रकार हैं ।१३७ आभ्यन्तर तप का दूसरा भेद विनय है। जिसका मानस सरल होता है वही गुरुजनों का विनय करता है। जहाँ अहंकार का प्राधान्य है वहाँ विनय नहीं है। सूत्रकृतांग टीका में विनय की परिभाषा करते हुए लिखा है - जिसके द्वारा कर्मों का विनयन किया जाता है वह विनय है । १३८ उत्तराध्ययन१३९ शान्त्याचार्य टीका में लिखा है जो विशिष्ट एवं विविध प्रकार का नय / नीति है, वह विनय है तथा जो विशिष्टता की ओर ले जाता है, वह विनय है। दशवैकालिक में विनय को धर्म का मूल कहा गया है। जैन आगम साहित्य में विनय शब्द का प्रयोग हजारों बार हुआ है। जब हम आगम साहित्य का परिशीलन करते हैं तो विनय शब्द तीन अर्थों में व्यवहृत मिलता है १. विनय- अनुशासन, २. विनय- आत्मसंयम ( शील, सदाचार), ३. विनय - नम्रता एवं सद्व्यवहार । उत्तराध्ययन में विनय का स्वरूप प्रतिपादित हुआ है। वह मुख्य रूप से अनुशासनात्मक है। गुरुजनों की आज्ञा, इच्छा आदि का ध्यान रखकर आचरण करना अनुशासनविनय है। विनीत व्यक्ति असदाचरण से सदा भयभीत रहता है। उसका मन आत्मसंयम में लीन रहता है। अविनीत व्यक्ति सड़े कानों वाली कुतिया की तरह दर-दर ठोकरें खाता है। लोग उसके व्यवहार से घृणा करते हैं। विनीत गुरुजनों के समक्ष सभ्यतापूर्वक बैठता है। वह कम बोलता है। बिना पूछे नहीं बोलता । इस प्रकार वह आत्मसंयम और सदाचार का पालन करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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