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________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन ९ आधुनिक विज्ञान ने वनस्पति के जीवों के सम्बन्ध में अध्ययन कर उसके सम्बन्ध में अनेक रहस्यों को अनावृत किया है। स्नेहपूर्ण सद्व्यवहार से वनस्पति प्रफुल्लित होती है और घृणापूर्ण व्यवहार से मुरझा जाती है। इस प्रकार की अनेक बातें जीवविज्ञान के सम्बन्ध में आगम साहित्य में आई हैं, जिसे सामान्य बुद्धि ग्रहण नहीं कर पाती। इसी तरह भूगोल और खगोल विद्या के सम्बन्ध में भी जैन आगम साहित्य में पर्याप्त सामग्री है। वैज्ञानिक अभी तक जितना जान पाए हैं, उससे अधिक सामग्री अज्ञात है। केवल पौराणिक चिन्तन कहकर उस सामग्री की उपेक्षा नहीं की जा सकती। अन्वेषणा करने पर, अनेक नए तथ्य उजागर हो सकते हैं। वैज्ञानिकों को चिन्तन करने के लिए नई दृष्टि प्रदान कर सकते हैं। जैन आगमों में उस युग की सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिस्थितियों का भी यत्र-तत्र चित्रण हुआ है। समाज और संस्कृति का अध्ययन करने वाले शोधार्थियों के लिए यह सामग्री बहुत ही दिलचस्प और ज्ञानवर्द्धक है। भाषाविज्ञान और अन्य अनेक दृष्टियों से जैन आगमों का अध्ययन चिन्तन की अभिनव सामग्री प्रदान करने में सक्षम है। जैन आगमों का मूल स्रोत, वेद नहीं कितने ही पाश्चात्य और पौर्वात्य विज्ञों का यह अभिमत है कि जैन आगम-साहित्य में जो चिन्तन आया है, उसका मूल स्रोत वेद है। क्योंकि वर्तमान में जितना भी साहित्य है, उन सबमें प्राचीनतम साहित्य वेद है। ऋग्वेद विश्व का प्राचीनतम ग्रन्थ है किन्तु आधुनिक अन्वेषणा ने उन विज्ञों के मत को निरस्त कर दिया है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के उत्खनन में प्राप्त ध्वंसावशेषों ने यह सिद्ध कर दिया है कि आर्यों के भारत में आने के पूर्व भारतीय संस्कृति और धर्म पूर्ण रूप से विकसित था२९| शोधार्थी मनीषियों का यह मानना है कि जो आर्य भारत में बाहर से आए थे, उन आर्यों ने वेदों की रचना की। जब वेदों में भारतीय चिन्तन का सम्मिश्रण हुआ तो वेद जो अभारतीय थे; वे भारतीय चिन्तन के रूप में विज्ञों के द्वारा मान्य किए गए। आर्य भ्रमणशील थे, भ्रमणशील होने के कारण उनकी संस्कृति अच्छी तरह से विकसित नहीं हुई थी जबकि भारत के आद्य निवासियों की संस्कृति स्थिर संस्कृति थी। वे एक स्थान पर ही अवस्थित थे, इस कारण उनकी संस्कृति आर्यों की संस्कृति से अधिक विकसित थी, वह एक प्रकार से नागरिक संस्कृति थी। बाहर से आने वाले आर्यों की अपेक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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