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________________ i भगवती सूत्र : एक परिशीलन १०१ रहता है। उसमें किसी प्रकार की कमी- वेशी नहीं होती, न किसी वर्तमान द्रव्य का पूर्ण नाश होता है और न किसी नए द्रव्य की पूर्ण रूप से उत्पत्ति होती है। हम जिसे द्रव्य का नाश समझते हैं वह उसका रूपान्तर है। जैसे एक कोयला जलकर राख बन जाता है; पर वह नष्ट नहीं होता । वायुमण्डल में ऑक्सीजन अंश के साथ मिलकर कार्बोनिक एसिड गैस के रूप में परिवर्तित हो जाता है, वैसे ही शक्कर या नमक आदि पानी में मिलकर नष्ट नहीं होते पर ठोस रूप को बदलकर द्रव रूप में परिणत हो जाते हैं । जहाँ कहीं भी नूतन वस्तु उत्पन्न होती हुई दिखलाई देती है, पर सत्य तथ्य यह है कि वह किसी पूर्ववर्ती वस्तु का ही रूपान्तर है। किसी लोहे की वस्तु में जंग लग जाता है। वहाँ पर जंग नामक कोई नया द्रव्य उत्पन्न नहीं हुआ, पर धातु की ऊपरी सतह पर पानी और वायुमण्डल के ऑक्सीजन के संयोग से लोहे के ओक्सीहाईड्रेट के रूप में परिणत हो गई। भौतिकवाद पदार्थों के गुणात्मक अन्तर को परिमाणात्मक अन्तर में परिवर्तित कर देता है। शक्ति परिमाण में परिवर्तन नहीं किन्तु गुण की दृष्टि से परिवर्तनशील है। प्रकाश, तापमान, चुम्बकीय आकर्षण आदि का ह्रास नहीं होता, अपितु वे एक दूसरे में परिवर्तित हो जाते हैं। उत्पाद, ध्रौव्य और व्यय द्रव्यों का यह त्रिविध लक्षण प्रतिक्षण घटित होता रहता है । इस शब्दावली में और जिसे " द्रव्य का ' नाश होना समझा जाता है वह उसका रूपान्तर में परिणमनमात्र है।” इन शब्दों में कोई अन्तर नहीं है । वस्तु की दृष्टि से इस विश्व में जितने द्रव्य हैं उतने ही द्रव्य सदा अवस्थित रहते हैं । सापेक्षदृष्टि से ही जन्म और मरण है। नवीन पर्याय का उत्पाद जन्म है और पूर्व पर्याय का विनाश मृत्यु है । सांख्यदर्शन ने पुरुष को नित्य और प्रकृति को परिणामीनित्य मानकर नित्यानित्यत्ववाद की संस्थापना की है। नैयायिक और वैशेषिक परमाणु, आत्मा प्रभृति को नित्य मानते हैं और घट, पट प्रभृति को अनित्यं मानते हैं। इस तरह समूह की दृष्टि से वे परिणामित्व एवं नित्यत्ववाद को स्वीकार करते हैं। पर जैनदर्शन की भाँति द्रव्य मात्र को परिणामी नित्य नहीं मानते । यह भी सत्य तथ्य है कि महर्षि पतञ्जलि और आचार्य कुमारिल भट्ट, पार्थसारथी प्रभृति मनीषियों ने परिणामीनित्यत्ववाद को स्पष्ट सिद्धान्त के रूप में मान्यता नहीं दी है, तथापि परिणामीनित्यत्ववाद का प्रकारान्तर २९१ से पूर्ण समर्थन किया है। द्रव्य शब्द अनेकार्थक है। सत् तत्त्व और पदार्थपरक अर्थ पर हम कुछ चिन्तन कर चुके हैं। सामान्य के लिए भी द्रव्य शब्द व्यवहृत हुआ है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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