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________________ भगवती सूत्र : एक परिशीलन ९५ है। जमाली सोचने लगे कि भगवान् महावीर क्रियमाण को कृत, चलमान को चलित कहते हैं जो गलत है। जब तक शय्या संस्तारक पूरा बिछ नहीं जाता तब तक उसे बिछा हुआ कैसे कहा जा सकता है? उन्होंने अपने विचार श्रमणों के सामने प्रस्तुत किए। कुछ श्रमणों ने उनकी बात को स्वीकार किया और कुछ ने स्वीकार नहीं किया। जिन्होंने स्वीकार किया, वे उनके साथ रहे और जिन्होंने स्वीकार नहीं किया, वे भगवान् महावीर के पास लौट आए। जब जमाली स्वस्थ हुए तब वे भगवान् महावीर के पास पहुंचे और कहने लगे-आपके अनेक शिष्य छद्मस्थ हैं, केवलज्ञानी नहीं। पर मैं तो केवलज्ञान-दर्शन से युक्त अर्हत् जिन और केवली के रूप में विचरण कर रहा हूँ। गणधर गौतम ने जमाली का प्रतिवाद किया। उन्होंने पूछा कि यदि आप केवलज्ञानी हैं तो बताएँ कि लोक शाश्वत है या अशाश्वत? जीव शाश्वत है या अशाश्वत? जमाली गौतम के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सके। तब भगवान महावीर ने कहा-जमाली! मेरे अनेक शिष्य इन प्रश्नों का समाधान कर सकते हैं, तथापि वे अपने-आपको जिन व केवली नहीं कहते हैं। जमाली के पास इसका कोई उत्तर नहीं था, वर्षों तक असत्य प्ररूपणा करते रहे। अन्त में अनशन किया पर पाप की आलोचना नहीं की। जिससे वे लान्तक देवलोक में किल्विषिक देव के रूप में उत्पन्न हुए। विशेषावश्यकभाष्य५९ में वर्णन है कि जमाली की विद्यमानता में ही प्रियदर्शना भी जमाली की विचारधारा में प्रवाहित हो गई थी और महावीर संघ को छोड़कर जमाली के संघ में मिल गई थी। एकदा अपने साध्वीपरिवार के साथ श्रावस्ती में ढंक कुंभकार की शाला में ठहरी। ढंक महावीर का परम भक्त था। उसने प्रियदर्शना को प्रतिबोध देने के लिए उसकी साड़ी में आग लगा दी। साड़ी जलने लगी। प्रियदर्शना के मुँह से शब्द निकले “संघाटी जल गई"। ढंक ने कहा-आप मिथ्या संभाषण कर रही हैं। संघाटी जली नहीं, जल रही है। प्रियदर्शना प्रबुद्ध हुई। उसे अपनी भूल परिज्ञात हुई। भूल का प्रायश्चित्त कर वह पुनः साध्वीसमूह के साथ महावीर के साध्वी-परिवार में सम्मिलित हो गई। गोशालक भगवतीसूत्र शतक १५ में गोशालक का ऐतिहासिक निरूपण हुआ है। गोशालक भगवान् महावीर की छद्मस्थ अवस्था में ही उनकी तपःपूत साधना को निहारकर उनका शिष्य बनने के लिए लालायित था। उसने भगवान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003173
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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