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________________ 96 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह सुमति पद्मप्रभ अरुसुपारस कोवंदन, अहो चन्द्रप्रभ जिनभनूँदुख निकन्दन। श्री पुष्पदंत सु शीतल जिनेश्वर, न[ भक्ति से पूज्य श्रेयांस जिनवर ॥ प्रथम बालयति वासुपूज्य सुस्वामी, करममल विघातक विमल जिन नमामी। अनन्त जिनेश्वर सुगुणऽनन्त धारी, न, धर्मनाथं धरम पथ प्रचारी॥ जज़ेशान्तिनाथं परम शान्तिदायक, जयतु कुन्थु जिनवर अहिंसा विधायक। श्री अर जिनेन्द्रं धरम नीति धारी, नमूं मल्लि जिनवर परम ब्रह्मचारी ।। मुनिसुव्रतं नमि तथा नेमिनाथं, नमूं पार्श्वनाथं श्री वीरनाथं । महाभक्ति से नाथ गुणगान करके, धरम तीर्थ पाऊँ स्वपद दृष्टि धरिके ।। न लौकिक फलों की प्रभो कामना है, न विषसम कुभोगों की कुछ वासना है। रहोआपआदर्शनिजपदको ध्याऊँ, कि साधन ही क्या? साध्य भी निज में पाऊँ ।। (घत्ता) जय जय अविकारी, शिवसुखकारी, तीर्थेश्वर चौबीस भला। जो प्रभु गुण गावें, मोह नशावें, पावें केवलज्ञान कला। ॐ ह्रीं श्री ऋषभादि चतुर्विंशतिजिनेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालाऽयं नि. (सोरठा) पूजें जिनपद सार, ध्यावें निज शुद्धात्मा। सो पावें भव पार, त्रिविध कर्ममल नाशिके।। ॥पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ॥ सर्व दु:ख से मुक्त होने का सर्वोत्कृष्ट उपाय आत्मज्ञान को कहा है, यह ज्ञानी पुरुषों का वचन सांचा है, अत्यन्त सांचा है। देह की जितनी चिन्ता रखता है उतनी नहीं, पर उससे अनंतगुनी चिन्ता आत्मा की रख; क्योंकि अनंतभवों को एक भव में दूर करना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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