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________________ 94 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह श्री चौबीसी समुच्चय पूजन (गीतिका) पंचकल्याणक सुपूजित, ऋषभ आदि जिनेश्वरा। वर्तमान में इस क्षेत्र में, विभु धर्म-तीर्थ प्रगट करा ॥ पूजन करूँ अति भक्ति से, उपकार परम विचारि के। बोधि समाधि प्राप्त हो, यह भाव उर में धारि के॥ ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशति जिनसमूह अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशति जिनसमूह अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशति जिनसमूह अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। (रोला) भव-भव में प्रभु जन्म मरण करि बहु दुख पाया। दर्शन पाकर आज देव! अमरत्व लखाया॥ समता जल ले पूनँ ध्याऊँ हे अविकारी। ऋषभादिक चौबीस जिनेश्वर मंगलकारी॥ ॐ ह्रीं श्री ऋषभादि चतुर्विंशतिजिनेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्व... । क्षमा भाव धरि क्रोधादिक पर प्रभु जय पाई। आत्म शान्ति की युक्ति दिव्यध्वनि से दरशाई॥ क्षमा भाव चन्दन ले पूर्जे हे अविकारी |ऋषभादिक. ।। ॐ ह्रीं श्री ऋषभादि चतुर्विंशतिजिनेभ्यो संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्व. स्वाहा । क्षत् भावों में फँसकर नहिं संपर बढ़ाना। नाथ इष्ट है तुम सम ही अक्षय पद पाना ।। आत्म भावना अक्षत ले पूजू अविकारी॥ऋषभादिक.॥ ॐ ह्रीं श्री ऋषभादि चतुर्विंशतिजिनेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा । प्रभु प्रसाद से काम सुभट क्षण में विनशाऊँ। भाऊँ ब्रह्म स्वरूप सहज आनन्द प्रगटाऊँ। जगूं पुष्प निष्काम भावमय ले अविकारी |ऋषभादिक.॥ ॐ ह्रीं श्री ऋषभादि चतुर्विंशतिजिनेभ्यो कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्व. स्वाहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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