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________________ 77 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह फल से पूनँ त्यागूं फल वाँछा दुखकारी। जिनवाणी भव्यों की माता सम उपकारी॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै मोक्षफलप्राप्तये फलं नि.स्वाहा। द्रव्य-भावमय अर्घ्य सजा पूनूं जिनवाणी। नित्य-बोधनी तरण-तारिणी शिवसुखदानी ॥ हो अनर्घ्य निज आतम प्रभुता मंगलकारी।जिनवाणी...॥ ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै दिव्यज्ञानप्राप्तये अयं नि.स्वाहा। जयमाला (दोहा) गाऊँ जयमाला अहो, तत्त्व प्रकाशनहार । जिनवाणी अभ्यास से, जानूँ जाननहार ।। (चौपाई) जिनवाणी शिवमार्ग बतावे, जिनवाणी निज तत्त्व दिखावे । जिनवाणी दुर्मोह नशावे, जिनवाणी भवफन्द छुड़ावे ॥ क्रोध अग्नि को सहज बुझावे, मान महाविष तुरत नशावे। मृदुता ऋजुता माँ सिखलावे, तोष सुधारस पान करावे ॥ जिनवाणी अभ्यास करें जे, निर्भय और निशंक रहें वे। दोष नशावें गुण प्रगटावें, सहज परम वात्सल्य बढ़ावें॥ निज से अस्ति पर से नास्ति, समझे सो ही पावे स्वस्ति। हो निष्काम निजातम भावे, हो निग्रंथ परमपद ध्यावे ।। असत् विभावों की नहिं चिन्ता, निजस्वभाव में सतत रमन्ता। कर्म कलंक समूल नशावें, ध्रुव अविचल शिवपदवी पावें ॥ आदर्शों का ज्ञान कराती, नैमित्तिक व्यवहार सिखाती। बन्ध-मुक्ति प्रक्रिया बताती, स्वानुभूति की कला सुझाती॥ चार अनुयोगमयी जिनवाणी, माता सम सबको सुखदानी। भक्ति भाव से करूँ अर्चना, आतमहित की जगी भावना ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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