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________________ आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह भोगों की नहीं कामना है, हे भगवन यही भावना है। प्रगटावें पावन जिनशासन, फैलावें जग में प्रभु शासन ॥ ॐ ह्रीं श्रीं सन्मतिवीरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । (सोरठा) शासन वीर महान, जयवन्तो जग में सदा । पाकर आतम ज्ञान, आनंदित हों जीव सब || ॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ॥ श्री श्रुतपंचमी पूजन (दोहा) जिनश्रुत की पूजा करूँ, भक्तिभाव उर धार । धन्य-धन्य श्रुतपंचमी, हुआ सुश्रुत अवतार ॥ पुष्पदंत अरु भूतबलि, किया परम उपकार । श्री षट्खण्डागम रचा, लिखा तत्त्व अविकार ॥ ॐ ह्रीं श्री परमश्रुत षट्खण्डागम ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री परमश्रुत षट्खण्डागम ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री परमश्रुत षट्खण्डागम ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । (रोला) जिनवाणी गुण गाऊँ, प्रासुक जल ले आऊँ । जन्म जरा मृत दोष नशाने, ध्रुवपद ध्याऊँ ॥ षट्खण्डागम आदि श्रुतों की पूजा करता । निज-पर भेद विज्ञान धार निज दृष्टि धरता ॥ ॐ ह्रीं श्री परमश्रुत षट्खण्डागमाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्व. स्वाहा । चन्दन से पूजूँ अरु जिनश्रुत पहूँ पढ़ाऊँ । Jain Education International 72 चन्दन सम शीतल परिणति निज में प्रगटाऊँ ॥ षट्... ॥ ॐ ह्रीं श्री परमश्रुत षट्खण्डागमाय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा । जिनवाणी के सन्मुख अक्षत शुद्ध चढ़ाऊँ । अक्षय आत्मस्वभाव सभी समझँ समझाऊँ ॥ षट ...॥ ॐ ह्रीं श्री परमश्रुत षट्खण्डागमाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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