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________________ G: आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह जड़ दीपक नहिं मोह विनाशनहार है। मोह नशे जब जाने जाननहार है।। नंदीश्वर के बावन मंदिर अकृत्रिम । पू→ श्री जिनबिम्ब अनूपम जिन समं॥ ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनबिम्बेभ्यः मोहांधकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा। प्रगटे अग्नी निर्मल आतम धर्म की। जिससे होवे हानि सर्व ही कर्म की|नंदीश्वर..॥ ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनबिम्बेभ्यः अष्टकर्मदहनाय धूपं..। पाऊँ परम भावफल प्रभु मंगलमयी। और कामना शेष नहीं मन में रही।नंदीश्वर..॥ ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनबिम्बेभ्यःमोक्षफलप्राप्तये फलं ..। शुद्धभावमय अर्घ्य करूँ आनन्द सों। पद अनर्घ्य पाऊँ छू, भवफन्द सों॥नंदीश्वर..॥ ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनबिम्बेभ्यः अनर्घ्यपदप्राप्तये अy..। जयमाला सोरठा- धर्म पर्व सुखकार, हे जिन ! पाया भाग्य से। ध्याऊँ प्रभुपद सार, विषय कषायारम्भ तजि ॥ (चौपाई) अष्टम द्वीप नंदीश्वर सार, पूनँ वन्दूँ भाव संभार। इक-इक अंजनगिरि अविकार, चार-चार दधिमुख सुखकार ॥ आठ-आठ रतिकर मनुहार, दिशि-दिशि तेरह मंदिर सार। बावन मंदिर यों पहिचान, निरखत होवे हर्ष महान ।। रत्नमयी मनहर जिनबिम्ब, सन्मुख भासे निज चिबिम्ब । वर्णन है जिन-आगम माँहिं, भाव सहित पूजत मन लाहिं ।। कार्तिक फाल्गुनऽषाढ़ मंझार, अन्त आठ दिन आनन्दधार। जहँ सुरगण वन्दन को जाँहि, पुरुषार्थी सम्यक्त्व लहाहिं ।। यद्यपि शक्ति गमन की नाँहि, तदपि ज्ञान में सहज लखाहिं। भाव वन्दना कर सुखकार, निज अकृत्रिम भाव निहार ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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