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________________ 52 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह अगुरुलघुसूक्ष्मत्व अवगाहन, अव्याबाध प्रगट भयो पावन । बिन्मूरति चिन्मूरति धारी, जनूं सिद्ध नित मंगलकारी ।। गुणस्थान चौदह के पार, नित्य निरामय ध्रुव अविकार । परमानन्द दशा विस्तारी, जजू सिद्ध नित मंगलकारी।। तीर्थंकर जब दीक्षा धारें, सिद्ध प्रभु का नाम उचारें। अचल अनूपम पदवी धारी, जजूं सिद्ध नित मंगलकारी ।। आत्माराधन का फल पाया, पंचम भाव प्रत्यक्ष दिखाया। महिमावंत ध्येय सुखकारी, जनूं सिद्ध नित मंगलकारी ।। एक क्षेत्र में प्रभु अनन्ते, सत्ता भिन्न-भिन्न विलसन्ते। अहो सु अद्भुत प्रभुता धारी, जजूं सिद्ध नित मंगलकारी ।। सिद्धालय ज्यों सिद्ध विराजे, देह माँहिं त्यों आतम राजे। ज्ञायक रूप परम अविकारी, जजूं सिद्ध नित मंगलकारी। भेदज्ञान करके पहिचाना, द्रव्यदृष्टि धरि सहज प्रमाना। होऊँ निश्चय शिवमगचारी, जज़े सिद्ध नित मंगलकारी ।। सहज रहूँ प्रभु जाननहार, परभावों का हो परिहार । कटे कर्मबन्धन दुःखकारी, जजू सिद्ध नित मंगलकारी ।। अपने में संतुष्ट रहाऊँ, अपने में ही तृप्त रहाऊँ! हुई नि:शेष कामना सारी, जजू सिद्ध नित मंगलकारी।। ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालाऽयं नि. स्वाहा। (सोरठा) निश्चल सिद्धस्वरूप, ज्ञानस्वभावी आत्मा । सहज शुद्ध चिद्रूप, अनुभव करि आनन्द भयो। ॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ॥ धर्म की प्रभावना वचनों से नहीं जीवन से होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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