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________________ 11 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह (चामर छन्द, तर्ज-पार्श्वनाथ देव सेव...) स्वयंसिद्ध सुख निधान आत्मदृष्टि लायके, जन्म-मरण नाशि हो मोह को नशायिके। बाहुबलि जिनेन्द्र भक्ति से करूँ सु अर्चना, तृप्त स्वयं में ही रहूँ अन्य हो विकल्प ना॥ ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । कल्पना, अनिष्ट-इष्ट की तर्जे अज्ञानमय, परिणति प्रवाहरूप होय शान्त ज्ञानमय॥ ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा । पराभिमान त्याग के, सु भेदज्ञान भायके,, लहूँ विभव सु अक्षयं, निजात्म में रमाय के॥बाहुबलि...।। ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा । छोड़ भोग रोग सम सु ब्रह्मरूप ध्याऊँगा, काम हो समूल नष्ट सुख-अनंत पाऊँगा ॥बाहुबलि...॥ ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । तोषसुधा पान करूँ आशा तृष्णा त्याग के, मग्न स्वयं में ही रहूँ चित्स्वरूप भाय के॥बाहुबलि... । ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । चेतना प्रकाश में चित् स्वरूप अनुभवू, पाऊँगा कैवल्यज्योति कर्म घातिया दलूँ॥बाहुबलि...॥ ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । आत्म ध्यान अग्नि में विभाव सर्व जारिहों, देव आपके समान सिद्ध रूप धारि हो॥बाहुबलि...॥ ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्राय अष्टकर्मविनाशनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। इन्द्र चक्रवर्ति के भी पद अपद नहीं चहूँ, त्रिकाल मुक्त पद अराध मुक्तपद लहूँ लहूँ॥बाहुबलि...॥ ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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