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________________ 114 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह आत्म-ध्यान की अग्नि, कर्म नाशन को प्रज्वलाई। स्वाभाविक दशधर्म सुगन्धी, जग में फैलाई। सुमति जिन पूजों हरषाई। कुमति विनाशक, सुमति प्रकाशक पूजों हरषाई। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म विनाशनाय धूपं नि. स्वाहा। भौतिक फल अब नहीं चाहिए, भव-भव दुखदाई। महामोक्ष फल प्रगटाने को परम शरण पाई।सुमति.।। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अन्तर में विलसाई स्वामी, अद्भुत प्रभुताई। __ अर्घ्य चढ़ाऊँ भक्ति जिनेश्वर, उर में उमगाई ।।सुमति.।। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अयं नि. स्वाहा। पंचकल्याणक अर्घ्य (छन्द-जोगीरासा) सोलह सपने माँ देखे, वर्ते उर हर्ष विशेषे । सावन सित दूज सुहाई, गरभागम मंगलदाई॥ ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लद्वितीयायां गर्भमंगलमंडिताय श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अयं । सित चैत एकादशि आई, जन्मे त्रिभुवन सुखदाई। कल्याणक इन्द्र मनावें, भवि पूजत बहु सुख पावें॥ ॐ ह्रीं वैत्रशुक्लैकादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य नि.। ग्यारसि सित चैत महाना, तप धारा श्री भगवाना। पूजत पद भावना भाऊँ, निग्रंथ दशा कब पाऊँ॥ ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लैकादश्यां तपोमंगलमंडिताय श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अयं नि.। सित चैत एकादशि आई, प्रभु केवल लक्ष्मी पाई। सुर समवशरण रचवाया, धर्मामृत प्रभु बरसाया। ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लैकादश्यां ज्ञानमंगलमंडिताय श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अयं नि. । एकादशि चैत सुदी की, पाई पंचम गति नीकी। प्रभु सविनय अर्घ्य चढ़ाऊँ, निर्मुक्त महापद ध्याऊँ। ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लैकादश्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य नि.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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