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________________ 100 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह गर्भवास नहिं इष्ट, तहाँ भी प्रभु आनन्दमय । माँ को भी नहिं कष्ट, रत्न पिटारे ज्यों रहे। ॐ ह्रीं आषाढकृष्णद्वितीयांगर्भकल्याणकमंडिताय श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अयं नि. पृथ्वी हुई सनाथ नवमी कृष्णा चैत को। नरकों में भी नाथ, जन्म समय साता हुई। इन्द्रादिक सिर टेक, कियो महोत्सव जन्म का। मेरु पर अभिषेक, क्षीरोदधि तें प्रभु भयो। ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णनवम्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि.। भासा जगत असार, देख निधन नीलांजना। नवमी कृष्णा चैत्र परम दिगम्बर पद धरो॥ चिदानन्द पद सार, ध्याने को मुनि पद लिया। परम हर्ष उर-धार लौकान्तिक, धनि-धनि कहा। ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णनवम्यां तपकल्याणकप्राप्ताय श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अयं नि.। प्रगट्यो केवलज्ञान, फाल्गुन कृष्ण एकादशी। धर्मतीर्थ अम्लान, हुआ प्रवर्तित आप से॥ समझा तत्त्व स्वरूप, दिव्य देशना श्रवण कर। पाई मुक्ति अनूप, भव्यन निज पुरुषार्थ से। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णैकादश्यां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अयं नि. पायो अविचल थान, चौदश कृष्णा माघ दिन । गिरि कैलाश महान, तीर्थ प्रगट जग में हुआ। सहज मुक्ति दातार, शुद्धातम की भावना। वर्ते प्रभु सुखकार, मैं भी तिळू मोक्ष में। ॐ ह्रीं माघकृष्णचतुर्दश्यां मोक्षकल्याणकप्राप्ताय श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अयं नि.। जयमाला आदीश्वर वन्दूँ सदा, चिदानन्द छलकाय। चरण-शरण में आपकी, मुक्ति सहज दिखाय॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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