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________________ 18 क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका गद्यांश 3 सर्वप्रथम स्वामीजी............. .........हम दोनों सहोदर सोनगढ़ गए। (पृष्ठ XI पैरा 2 से पृष्ठ XII पैरा 3 तक) विचार बिन्दु :- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक को स्वामीजी के प्रथम दर्शन होने के प्रसंग का उल्लेख है। उन्होंने 1957 में बबीना, सोनगिर और चांदखेड़ी में स्वामीजी के प्रवचनों का लाभ लिया और अपनी सर्वप्रथम कृति देव-शास्त्रगुरु पूजन उन्हें भेंट की। स्वामीजी द्वारा सोनगढ़ आने का निमंत्रण मिलने का वर्णन भी अत्यन्त रोमाञ्चक है। प्रश्न :5. लेखक स्वामीजी के परिचय में किस प्रकार आए? सभी प्रसंगों का क्रमबद्ध उल्लेख कीजिए? 6. लेखक की सर्वप्रथम प्रकाशित कृति कौन-सी थी तथा उसकी क्या विशेषता थी? 7. स्वामीजी ने लेखक को सोनगढ़ आने का निमंत्रण क्यों दिया? **** गद्यांश 4 क्रमबद्धपर्याय की बात.......... (पृष्ठ XII पैरा 4 से सम्पूर्ण) विचार बिन्दुः- इस गद्यांश में लेखक ने क्रमबद्धपर्याय का परिचय होने से पूर्व अपनी कमियों और विशेषताओं का निःसंकोच वर्णन किया है। समझ में शास्त्रों का मर्म तो नहीं, पर मान तो आ ही गया था' इस वाक्य के माध्यम से उन्होंने अपनी कमजोरी बताते हुए इस तथ्य की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है कि आध्यात्मिक रुचि के बिना शास्त्रज्ञान किसप्रकार कषायपोषक हो जाता है। प्रश्न :8. क्रमबद्धपर्याय की बात समझने से पूर्व लेखक की विशेषताओं और कमियों का ___ उल्लेख करते हुए उनका कारण भी बताइये? 9. क्रमबद्धपर्याय की बात लेखक की समझ में कैसे आई? **** काल पक गया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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