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________________ - r APRIdपया दअमकाव नाजाय ासमझनक विषय-प्रवेश सर्वप्रथम आध्यात्मिक सत्पुरुष पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी का संक्षिप्त परिचय देकर उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों का उल्लेख करते हुए क्रमबद्धपर्याय विषय की चर्चा प्रारंभ की जाए, तथा इस विषय को समझने की आवश्यकता प्रतिपादित की जाए। एतदर्थ निम्न आशय के विचार व्यक्त किये जायें : "आध्यात्मिक सत्पुरुष पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी की मंगल वाणी के प्रताप से इस युग में अभूतपूर्व आध्यात्मिक क्रान्ति का सृजन हुआ। पूज्य गुरुदेवश्री के सातिशय प्रभावना योग में वीतराग दिगम्बर जैन धर्म के प्रचार-प्रसार की जो गतिविधियाँ समाज में चल रही हैं, वे सर्वविदित हैं। उनके प्रवचनों के माध्यम से समाज में सात तत्व, सम्यग्दर्शन व उसका विषय, कर्ता-कर्म, निमित्त-उपादान, षट्कारक मिश्चय-व्यवहार, क्रमबद्धपर्याय, अकर्तावाद, पाँच समवाय, अनेकान्त-स्थांद्वाद, रत्नत्रय आदि अनेक विषयों को समझने की न केवल जिज्ञासा जागृत'हुई, अपितु'हजारों लाखों लोगों में इन विषयों की यथार्थ समझ भी विकसित हुई है। दिगम्बर समाज में विद्यमान सकड़ों आध्यात्मिक प्रवक्ता, सैकड़ों स्वाध्याय सभायें एवं हजारों स्वाध्यायी आत्मा भाई-बहनों के रूप में हम इस आध्यात्मिक क्रान्ति का प्रत्यक्ष अनुभव कर सकते हैं। वैसे तो पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा समझाए गए जिमागम के सभी विषयों की चर्चा और उनका पठन-पाठन समाज में चल रहा है; परंतु उममें श्रमबद्धपर्याय सर्वाधिक चर्चित विषय है। पूज्य गुरुदेवश्री स्वयं अपने प्रवचनों में “जे द्रव्यनी, जे काले, जे पर्याय, जे निमित्तनी हैयाती मा जेम थानी छै; तेज द्रव्यनी, तेज काले, तेज पर्याय, तेज निमित्तनी हैयाती मा तेमज थया बिना रहेशे नहीं".... इन शब्दों के माध्यम से अत्यंत प्रमोद भाव से इस विषय की चर्चा किया करते थे। वे अपने प्रवचनों में इस विषय को समझकर सर्वज्ञता का निर्णय करने पर बहुत वजन देते थे। उन्हें इस सिद्धान्त की श्रद्धा स्थानकवासी साधु अवस्था में ही जिनागम के आधार पर स्वयं के चिन्तन मनन एवं पूर्व संस्कार से हो गई थी। इस सन्दर्भ में वे स्वयं एक घटना की चर्चा करते थे; जिसका भाव निम्नानुसार है - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003169
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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