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________________ सम्यक्चारित्र के लिए किए गए विपरीत प्रयत्नों के सन्दर्भ में ... की योग्यता ऐसी है कि जब तक विपरीत अभिप्राय रहता है तब तक कषाय का अभाव अर्थात् वीतरागता का अंश भी प्रारम्भ नहीं होता । निरपेक्षता की मर्यादा मात्र इतनी है कि विपरीत अभिप्राय के होते हुए भी तीव्रतम से लेकर मन्दतम कषाय अर्थात् कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म और शुक्ल - ये सभी लेश्याएँ हो सकती हैं; परन्तु कषाय का अभाव नहीं हो सकता । 93 परिणामों की भी ऐसी स्वतन्त्र योग्यता है कि सम्यक् अभिप्राय अर्थात् सम्यग्दर्शन होने पर अनन्तानुबन्धी कषाय तो नहीं होती, परन्तु अप्रत्याख्यान कषाय के उदय में अव्रत-सम्यग्दृष्टि को भी छहों लेश्याएँ हो सकती हैं। जब मात्र प्रत्याख्यान और संज्वलन कषाय का उदय रहता है तब पीत, पद्म और शुक्ल ये तीन लेश्याएँ ही होती हैं। विपरीत अभिप्राय सहित चारों आयु का बन्ध हो सकता है, परन्तु सम्यक् अभिप्राय होने पर मनुष्य को देवायु का और देव को मनुष्यायु का ही बन्ध होता है। सम्यग्दर्शन होने पर भले असंख्यात वर्ष लग जायें, परन्तु भव तो बहुत अल्प रह जाते हैं । सम्यग्दर्शन होने पर अल्पकाल में मुक्ति अवश्य होती है, अर्थात् सम्पूर्ण कषायों का क्षय अवश्य होता है। अर्द्धपुद्गलपरावर्तन से किञ्चित् कम समय तक उसकी संसार में रहने की अधिकतम स्थिति है। अनादिअनन्त काल प्रवाह में तो यह समय समुद्र में एक बूँद के समान ही है। इस प्रकार अभिप्राय और परिणाम स्वतन्त्र होने पर भी उनमें इतना सम्बन्ध अवश्य है कि विपरीत अभिप्राय के रहते हुए संसार-भ्रमण का अन्त नहीं हो सकता और सम्यक् अभिप्राय के रहते हुए अधिक समय तक संसार में ही नहीं रह सकता । इस अपेक्षा से परस्पर सापेक्ष भी कहे जा सकते हैं। प्रश्न :- अभिप्राय का बिगड़ना या सुधरना क्या है ? उत्तर :- मोक्षमार्ग में प्रयोजनभूत सात तत्त्वों की भूल अर्थात् मिथ्या For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003168
Book TitleKriya Parinam aur Abhipray
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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