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________________ ग्रंथकर्ता मोर कवि ४०० प्रारम्भ-नमो राजगुरु शांत दांत करुणा सुखकारी । नमो राजगुरु सूरवीर धर धीर अपारी ।। नमो राजगुरु दया-दयाल दिल क्षमा भण्डारी । नमो राजगुरु मुनि महंत पंडित सिंगारी ॥१॥ मन्त-गुरुराज स्वामी जगतनामी प्रानन्दविजय ध्यावतां । श्री सूरि आत्माराम मुनि रिख तप तपीश्वर गावतां ।। कुजरवाल निहार कर गुरु खुशी जी खुशी प्रानन्दना । रिष वेद ग्रह चन्द (१९४७) भादरों तिथ पंचमी पख चांदना ।। १६।। (चिट्ठी प्रात्माराम जी के नाम) कवि परिचय-कवि खुशीराम आचार्य विजयानन्द सूरि के समकालीन, जैनश्वेतांबर मूर्तिपूजक धर्मानुयायी, गुजरांवाला पंजाब निवासी, बीसा प्रोसवाल दुग्गड़ गोत्रीय ज्ञान-चरित्रवान् श्रावक थे । अाप उच्चकोटि के कवि थे । जनदर्शन और धर्म के विद्वान थे। आपने सैंकड़ों रचनाएं हिंदी पंजाबी भाषा में की हैं। इनमें कई तो ऐतिहासिक दृष्टि से भी बड़े महत्व की हैं। उस समय के पंजाब के प्रमुख श्रावकों के नाम कई रचनामों में मिलते हैं । पंजाब में विचरण करनेवाले अनेक साधु साध्वियों के विहार और चौमासों के वर्णन तथा उनके जिनशासन प्रभावना के कार्यकलापों का परिचय मिलता है । उस समय के धार्मिक संघर्षों का भी चित्रण पाया जाता है। कई धार्मिक उत्सवों, संघों एवं मुनियों आदि का विवरण भी प्रापकी रचनाओं में मिलता है । प्राप जीवन के अन्तिम श्वासों तक कविताओं की रचना करते रहे हैं जो छंद, अलंकार, राग-रागनियाँ तथा भाषा की दृष्टि से उच्चकोटि की हैं । आपका व्यवसाय सोना-चांदी (सराफ़ा)का था । अाप आर्थिक दृष्टि से भी बहुत सम्पन्न थे । खेद का विषय है कि आपकी रचनाओं का संकलन नहीं हुआ। आपका देहांत गुजराँवाला में वैसाख प्रविष्टा ३ वि० सं० १९८३ में हुमा। कवि की वंशावली-१. शाह नानकचन्द, पुत्र शाह दीपचन्द्र पुत्र शाह प्रासानन्द व शाह बंसीधर, आसानन्द के दो पुत्र हजारीलाल व लक्ष्मीचन्द (लक्ष्मीचन्द ने जैनसाधु की दीक्षा ले ली) शाह हजारीलाल के तीन पुत्र शाह कुद्धामल, शाह बुद्धा (बुधमल), शाह सुखानन्द । शाह कुद्धामल के दो पुत्र शाह राजकौर, शाह गुलाबचन्द, शाह राज कौर के दो पुत्र शाह दित्तामल, शाह गण्डामल । शाह दित्तामल के पुत्र कवि खुशीराम । कवि का पुत्र रघुनाथमल था इस के तीन पुत्र सुलखनमल, बाबूलाल, शादीलाल । सुलखनमल की कोई सन्तान नहीं थी, इसकी मृत्यु विवाह के बाद शीघ्र ही हो गयी थी। पाकिस्तान बनने के बाद बाबूलाल अपने परिवार के साथ अम्बाला शहर में तथा शादीलाल अपने परिवार के साथ लुधियाना में प्राबाद हो गया हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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