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________________ ३८० मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म संक्षिप्त विधान बनाया गया और सके ध्येय निश्चित किये गये। इस समय छोटी सी पंजाब श्वेतांबर जैनसमाज के ७१६ वयस्क इस संस्था के सदस्य बन गये । ये ४७ भिन्न-भिन्न नगरों के थे। जो पंजाब के अतिरिक्त सीमाप्रांत, हिमाचल, काश्मीर, हरियाणा, उत्तरप्रदेश आदि प्रांतों से भी सम्बन्ध रखते थे। इस प्रकार अाज तक इसके अनेक अधिवेशन होते रहे हैं और जैनसमाज में धार्मिक, सामाजिक, व्यावहारिक प्रगति और सुधार के लिये अनेक उपयोगी प्रस्ताव पारित करके कार्यान्वित किये। राजनैतिक गुत्थियों को निपटाने के लिये इस महान संस्था ने बहुत उपयोगी सहयोग दिया। शिक्षाप्रचार ---- महासभा ने योजना बनाई कि पंजाब में श्वेतांबर जैन समाज की जितनी भी शिक्षणसंस्थाएं हैं उनको सँगठित करने के लिये एक पंजाब जैन शिक्षा बोर्ड बनाया जाबे परन्तु उसमें महासभा को सफलता प्राप्त न हो पाई। फिर भी सब शिक्षण संस्थानों के लिये महासभा का सहयोग सदा कायम रहा और है। अनेक साधनहीन विद्यार्थियों को स्कालरशिप देकर उच्चशिक्षण पाने में सहयोग दिया। जो आज भी बड़ी-बड़ी उच्च श्रेणियों के विद्वान एवं व्यवसायी हैं। पत्र-पत्रिका-प्रारंभ में मार्थिक कठिनाइयों के कारण महासभा अपना स्वतंत्र पत्र न निकाल सकी । पर मेरठ से निकलने वाले पत्र देशभक्त और फरीदकोट से निकलने वाले मासिक पत्र उर्दू "अाफताब जैन" से महासभा का सम्बन्ध रहा। फिर श्री प्रात्मानन्द जैन गुरुकुल, श्री आत्मानन्द जैन सभा अंबाला तथा महासभा ने संयुक्त रूप से अंबाला से "आत्मानन्द" नामक मासिक पत्र प्रकाशित करना चालू किया और अन्त में महासभा ने 'विजयानन्द" नाम से अपना स्वतंत्र मासिक पत्र चालू किया जो आज तक नियमित रूप से बराबर प्रकाशित हो रहा है। साहित्यक और सांस्कृतिक भारतवर्ष के इतिहास में अनेक पुस्तकों में जैनधर्म व दर्शन के सम्बन्ध में भ्रांत उल्लेख किये जाते हैं । महासभा ने उन लेखों को शुद्ध कराने के प्रयास किये । श्री विजयानन्द सूरि (मात्माराम) जी के उर्दू हिन्दी में जीवनचरित्र प्रकाशित किये। जैन विवाहपद्धति, अनेकांतवाद, मूर्तिपूजा आदि पर ग्रंथ लिखवाये गये और उनका प्रचार किया गया। श्री कल्पसूत्र हिन्दी में प्रकाशित किया गया, ताकि आबालवृद्ध उसको पढ़कर लाभ उठा सकें। इनके बाद भी प्राज तक महासभा ने अट्ठाई व्याख्यानादि कई ग्रंथ प्रकाशित किये हैं। हस्तलिखित ग्रंथों की सूची-पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर को सहयोग देकर पंजाब के कुछ हस्तलिखित जनभंडारों के ग्रंथों की सूची प्रकाशित कराई गई, जिससे भारतीय साहित्य के अनुसंधान में पर्याप्त सहायता मिली। जैनमंदिरों की व्यवस्था में योगदान--भेरा, राहों, वैरोवाल व किलासोभासिंह आदि मंदिरों की जहाँ जैनों की बस्ती एकदम नहीं रही थी, उनकी समुचित व्यवस्था की। गिरनार तीर्थ की सहायता के लिये निधि एकत्रित करके भेजी । शत्रुजयतीर्थ पर पालीताणा के ठाकुर की श्रोर से किये जानेवाले अन्याय का विरोध किया गया। काँगड़ा के किला में विराजमान भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा की हो रही अशातना को रोकने और जैनपद्धति के अनुसार उसकी पूजा के किये जाने की व्यवस्था में महासभा ने महत्वपूर्ण कार्य किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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