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________________ ३७० मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म बावन शिखरों वाला जैनमंदिर कुतुबमीनार के पास ही जिस स्थान पर 'लोहे की लाट' लगी हुई है वह जनों का बावन शिखरोंवाला भव्य जैनमन्दिर था। उसकी बाहरी व भीतरी दीवारों पर तीर्थकर प्रतिमाएँ, खड़ी व बैठी मुद्रामों में अब भी देखी जा सकती हैं। कुतुब बनाते समय उसके निचले भागों में संभवतः इसी जैनमन्दिर की प्रतिमाओं को दवा दिया गया था। __ अशोक कालीन लोहे की लाट किसी अन्य स्थान से लाकर मुगलकाल में वहाँ पारोपित की गई है। अंग्रेजी दैनिक "टिब्यून" (चंडीगढ़) २४-८-७६ पृ० १ इससे पहले भी अति प्राचीन काल से लेकर अंग्रेजों के भारत में आने से पहले तक सब विदेशी आक्रमणकारी भारत में हिमालय के दरों के रास्ते से आये । उन्होंने सबसे पहले पंजाब पर ही आक्रमण किया और भारत की सम्पत्ति को बेधड़क होकर लूटा एवं इनके मंदिरों और स्मारकों को ध्वंस किया । अतः जिसका जब जोर बढ़ा उसने जैनमंदिरों आदि का ध्वंस किया तथा अपने इष्टदेवों के मंदिरों अथवा मस्जिदों के रूप में परिवर्तित कर लिया। फिर भी बीच बीच में जैन मंदिरों-स्मारकों का निर्माण भी होता रहा। किन्तु विक्रम को १८ वीं शताब्दी से पंजाब प्रादि उत्तरीय भारत के क्षेत्र में जैनसंस्कृति का ऐसा सफ़ाया हो गया कि न तो यहाँ कोई प्राचीन जैनमंदिर ही रह पाया और न प्राचीन हस्तलिखित जैन साहित्य के ग्रंथ ही रहने पाए। परिणामस्वरूप जैनमंदिरों को अधिकतर ध्वंस कर दिया गया और जो कुछ थोड़े बहुत बच भी पाये थे उन्हें बौद्ध, हिन्दू मंदिरों, मुसलमानों की मस्जिदों के रूप में बदलकर अपना अधिकार जमा लिया और जो जैनों के पास रह गये, उन्हें स्थानकों के रूप में अथवा विशेष कर हरियाणा प्रदेश में दिगम्बर मंदिरों अथवा स्थानकों के रूप में परिवर्तित कर लिया गया। ____ कारण यह था कि इस काल में श्वेतांबर जैन साधुओं का पंजाब में आना एक दम बन्द हो गया और ढूंढक मत के सर्वत्र प्रचार हो जाने के कारण यहाँ का सारा जनसमाज प्रायः इस मत का अनुयायी हो गया था और जैन मंदिरों का मानना छोड़ देने से ऐसा परिणाम प्राया । पंजाब में जैन शिक्षण संस्थाएँ १-अंबाला शहर (१) श्री आत्मानन्द जैन डिग्री कालेज-यह कालेज सारे सिंध, हरियाणा, पंजाब का सबसे पहला जैन डिग्री कालेज है। इसकी स्थापना २० जून १९३८ सन् ईस्वी में जैन श्वेतांबर प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि ने की थी। प्राचार्य श्री ने इस कालेज की स्थापना जैनदर्शन और सरकारी व्यवहारिक (दोनों) शिक्षण देने के लिए की थी। जबकि सरकारी शिक्षण ही हो पाता है, जैनदर्शन के अभ्यास का अभाव है । लड़के लड़कियां दोनों एक साथ पढ़ते हैं। इसका विशाल छात्रावास तथा बहुत बड़ी लायब्ररी और वाचनालय भी हैं। (२) श्री प्रात्मानन्द जैन हाईस्कूल की स्थापना भी प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि ने ईस्वी सन् १९२६ में की थी। इसका उद्देश्य भी दोनों प्रकार के शिक्षण देने का था। कुछ वर्ष तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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