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________________ अध्याय ४ जैनधर्म के सम्प्रदायों का इतिहास १. दिगम्बर पंथ - एक सिंहावलोकन आर्हत (निर्ग्रथ - जैनश्रमण ) धर्म में से ऋषभदेव से लेकर महावीर तक तथा उसके बाद भी समय-समय पर किन्हीं कारणों को लेकर अलग होने वाले श्रमणों ने अपने-अपने अलग-अलग मत, पंथ, संप्रदाय स्थापित किये। श्री महावीर के समय में ( १ ) तथागत गौतम ने पार्श्वनाथ के संघ से अलग होकर बुद्धमत की स्थापना की । (२) भगवान महावीर के शिष्य मंखली गोशालक ने महावीर से अलग होकर आजीविक पंथ की स्थापना की। (३) भ० महावीर के गृहस्थावस्था के दामाद जमाली ने भगवान महावीर से निग्रंथ श्रमण की दीक्षा ली। पश्चात् महावीर से अलग होकर इस ने बहुरत मत की स्थापना की । यह संप्रदाय जमाली के देहांत के बाद समाप्त हो गया । महावीर के बाद भी इनके शासन से कई श्रमणों ने अलग होकर अपने-अपने पंथ कायम किये । ऐसे सब मत, पंथ, संप्रदायों को जैनागमों में निन्हव कहा है । जिसका अर्थ होता है पलाप करनेवाला (ऊटपटांग कथन करने वाला) । भ० महावीर के बाद जैनश्रमण संघ से अलग होकर त्रैराशिक आदि अनेक निन्हव मत स्थापित होने के उल्लेख प्राचीन साहित्य में पाये जाते हैं । उन में से एक दिगम्बर पंथ भी है । दिगम्बर पंथोत्पत्ति १. कुछ यूरोपीय और भारतीय विद्वानों का ख्याल है कि महावीर के निर्वाण के बाद तुरन्त ही उन के शिष्यों में दो विभाग हो गये थे । जो बाद में श्वेताम्बर दिगम्बर के नाम से प्रसिद्ध हुए । पर वास्तव में यह बात नहीं है । जिन बौद्ध उल्लेखों के आधार से वे ऐसा ख्याल करते हैं, वे उल्लेख वस्तुतः महावीर के जीवनकाल में उनके शिष्य जमाली द्वारा खड़े किये गये मतभेद के सूचक हैं । ' २. दिगम्बर ग्रंथों के आधार से किन्हीं विद्वानों की यह धारणा है कि श्रुतकेवली भद्रबाहु तथा सम्राट चन्द्रगुप्त मोर्य के समय में महावीर से १५० वर्ष बाद निग्रंथ संघ के दो विभाग हुए। जो श्वेतांबर और दिगम्बर नाम से प्रसिद्धि पाये । इन विद्वानों की यह धारणा है कि उस समय मगध में प्रलयंकारी १२ वर्षीय महादुष्काल पड़ा था तब चन्द्रगुप्त मौर्यं श्रुतकेवली भद्रबाहु से दीक्षा लेकर उनके साथ दक्षिण भारत में श्रमणबेलगोला स्थान पर चले गये और वहाँ ही उन दोनों का देहांत हो गया | दुष्काल समाप्त होने पर जब उन के साथी साधु मगध में वापिस लौट देखें पंन्यास कल्याण विजय जी महाराज लिखित वीर निर्वाण संवत् और जैन काल गणना नामक लेख । For Private & Personal Use Only 1. Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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