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________________ मुगल सम्राटों पर जैनधर्म का प्रभाव अकबर था तो अनपढ़, परन्तु था विचक्षण, बुद्धिमान, जिज्ञासु और शांतिपसंद । इस का विश्वास था कि जब तक देश में धार्मिक असहिष्णुता रहेगी तब तक मेरा मन शांत न होगा। चाहे कितने ही धर्म क्यों न हों यदि उन को सत्य के मूल पर प्रतिष्ठित किया जावे तो उन में परस्पर एकता तथा एकमत अवश्य हो सकता है । इसलिये उसने 'दीने इलाही मत' की स्थापना की थी। उपर्युक्त सूची में जति और सेवड़ा-ये दो शब्द भी पाये हैं। जति शब्द का प्रयोग श्वेतांबर जैन मूर्तिपूजक धर्मानुयायी श्रमण (साधु) के लिये किया जाता है। सेवड़ा शब्द भी इन्हीं श्वेतांबर साधुप्रों के लिये भाया है। सेवड़ा शब्द श्वेतांबर का अपभ्रंश है। ये दोनों शब्द श्वेतांबर जैनसाधुनों के लिये ही आये हैं । यद्यपि यह बात तो निर्विवाद है कि अकबर के दरबार में रहने वाले दो मुसलमान इतिहासकार १. शेख अबुलफ़ज़ल तथा २. बदाउनी थे और जिनके ग्रंथों के आधार से ही अब तक प्रत्येक ने प्रकबर के संबन्ध में जो कुछ भी लिखा है पाठकों को उससे जानकारी मिली है । वे दोनों अकबर पर प्रभाव डालने वाले जैनसाधुओं के नामों का उल्लेख करने से भूले नहीं, जोकि ये नाम यति और सेवड़ा शब्द से दिये गए हैं । परन्तु जनसाधु अकबर के दरबार में गये थे और उनके उपदेश से उसपर बहुत प्रभाव पड़ा था, यह बात तो उन्होंने अवश्य ही स्वीकार की है किन्तु उनके बाद के जैनेतर विद्वानों, अनुवादकों और स्वतंत्र लेखकों के द्वारा ही बौद्धश्रमण अथवा अन्य कोई लिखकर उपर्युक्त सत्य प्रसंग को ढाँकने के प्रयास किये गये हैं । ऐसा उनके ग्रंथों को गहराई से पढ़नेवाले पाठकों की दृष्टि से प्रोझल कदापि नहीं रह सकता । अधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि अबुलफ़जल ने अकबर की धर्मसभा में १४० सदस्यों को पाँच श्रेणियों में विभक्त किया है। उनकी जो नामावली प्राइने अकबरी के दूसरे भाग के तीसरे प्राइन में दी है उन में पहली श्रेणी में हरि जी सूर (ठीक नाम-हीरविजय सूरि) तथा पांचवीं श्रेणी में विजयसेन सूर और भानचंद्र (ठीक नाम - विजयसेन सूरि तथा भानुचंद्र) के नाम होते हुए भी, वे कौन थे ? किस धर्म के थे ? इत्यादि कुछ भी जानने को परवाह उन स्वतंत्र लेखकों और अनुवादकों ने नहीं की। परन्तु यदि वे जैनधर्म के थोड़े-- बहुत अभ्यासी भी होते तो उन्हें इस बात को स्वीकार करने के लिये बाध्य होना पड़ता कि अबुलफ़ज़ल ने उपर्युक्त जिन तीन नामों का उल्लेख किया है वे बौद्ध श्रमणों अथवा दसरों किन्हीं के नाम नहीं हैं किन्तु जैनसाधुओं के ही हैं। तथापि इन इतिहास लेखकों ने जैन इतिहास के साथ खिलवाड़ ही की है। तथापि इस खिलवाड़ के घने बादलों को दूर करके इतिहास के क्षेत्र में यदि किसी जैनेतर लेखक ने सत्य सूर्य का प्रकाश किया है तो वह एक (Akbar the great Moghal) 'अकबर दी ग्रेट मुगल' नामक अति महत्वपूर्ण पुस्तक लिखनेवाले डा० विसेन्ट ए० स्मिथ ही है। वह बहुत शोध और परामर्शपूर्वक लिखता है कि "अबुलफ़ज़ल और बदाउनी के ग्रंथों के अनुवादकों ने अपनी अनभिज्ञता (नासमझी) ही के कारण से जैन के स्थान में बौद्ध शब्द का सर्वत्र व्यवहार किया है। कारण कि अबुलफज़ल ने अपने ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि-सूफ़ी, दार्शनिक, ताकिक, स्मार्त्त, सुन्नी --- शिया, ब्राह्मण, यति, सेवड़ा, 1. पाइने अकवरी खंड १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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