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________________ मुग़ल सम्राटों पर जैनधर्म का प्रभाव २६३ “The Shahioshah's Court became the home of enquirers of the seven climes, and the assembly of the wise of every religion and sect.1 __ अर्थात् --शाहेनशाह का दरबार, सातों प्रदेशों (पृथ्वी के भाग) के संशोधकों तथा प्रत्येक धर्म तथा सम्प्रदाय के बुद्धिमानों का घर बन गया था। __अकबर की इस धर्मसभा में १४० सदस्य थे और इन्हें पांच विभागों में विभक्त किया हमा था। पाइने अकबरी (अंग्रेजी) के दूसरे भाग के तीसरे पाईन में इन सदस्यों की नामावली दी गई है। उसके पृष्ठ ५३७-५३८ में पहले वर्ग में (प्रथम दर्जे में) २१ सदस्यों के नाम आये हैं । इसमें सोलहवां नाम हरि जी सूर (Hariji Sur) है । हरिजी सूर, यही जगद्गुरु हीरविजय सूरि हैं। हम लिख पाये हैं कि अकबर बादशाह के बुलाने पर प्राचार्य श्री हीरविजय सूरि उसके वहाँ मुनिमण्डल के साथ पधारे और उनके प्रभाव से अकबर के जीवन में परिवर्तन आया । जगद्गुरु हीरविजय सूरि, सवाई विजयसेन सूरि तथा आपके शिष्यों-प्रशिष्यों के प्रभाव से सम्राट अकबर ने समय-समय पर अपने सारे राज्य में राजकीय फ़रमानों (आज्ञापत्रों) को राजकीय मोहर लगाकर जारी किया; उन प्राज्ञाओं का विवरण इस प्रकार है। १-श्वेतांबर जैनों के पर्युषण पर्व के १२ दिनों (भादों वदि १० से भादों सुदि ६) तक; सारे रविवारों को, सम्राट के जन्मदिन का मही,न सम्राट के तीनों पुत्रों के जन्म के तीनों पूरे महीने, सफ़ी लोगों के दिन, ईद के दिन, वर्ष में १२ सूर्य संक्रान्तियां, नवरोज़ के दिन; कुल मिला कर वर्ष में ६ मास ६ दिन सारे राज्य में सर्वथा जीवहिंसा बंद करने के फ़रमान (आज्ञापत्र) जारी करके उन्हें राज्य मुद्रांकित किया और उन्हें सारे राज्य के १४ सूबों के सूबेदारों को भेज दिया । ताकि इनके अनुसार वहाँ अहिंसा का पालन होता रहे । २-सारे राज्य में जज़िया (अमुसलिमों से लिये जाने वाला कर) लेना बन्द करा दिया। ३--मेड़ता में जैनधर्म के त्योहारों को स्वतंत्रता पूर्वक मनाने का आदेश दिया। ४- डामर तालाब पर जाकर पशुओं को पिंजरों से मुक्त कराया तथा मछलियाँ पकड़ना बंद कराया। ५-जैनमंदिरों के सामने बाजे बजाने की निषेधाज्ञा को हटाया । ६-सम्राट ने स्वयं शिकार खेलने का त्याग किया और गुरुदेव को वचन दिया कि सब पशु-पक्षी मेरे राज्य में मेरे समान सुखपूर्वक रहें, मैं सदा इसके लिये प्रयत्नशील रहूंगा। ७--अकबर स्वयं पांच सौ चिड़ियों की जिह्वानों का मांस प्रतिदिन खाया करता था, उस का त्याग कर दिया। ८-शत्रुजय, गिरनार, तारंगा, आबू, केसरियाजी (श्री ऋषभदेवजी) ये जैनतीर्थ जो गजरात, सौराष्ट्र और राजस्थान में हैं तथा राजगृही के पांच पहाड़, सम्मेतशिखर (पार्श्वनाथ पहाड़) आदि। जो बिहारप्रांत के जैनतीर्थ हैं, उन सभी पहाड़ों के नीचे प्रासपास ; सभी मंदिरों 1. Akbarnama translated by H. Beveridge Vol. III P. 366. 2. यह तालाब फतेहपुर-सीकरी के निकट था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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