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________________ मौर्य साम्राज्य और जैनधर्म २७१ ३-अशोक मौर्य महान् अशोक बिंदुसार का पुत्र तथा चंद्रगुप्त का पौत्र था। पिता की मृत्यु के बाद ईसा पूर्व २७२ से २३२ तक ४० वर्ष राज्य किया। काश्मीर इसके राज्य में शामिल हो चुका था। कलिंग विजय के बाद इसने बौद्धधर्म स्वीकार कर लिया था। इसने भारतवर्ष में अनेक स्थानों पर स्तूपों का निर्माण कराया और उनपर धर्मलेख खुदवाये। सारे विश्व में इसने बुद्धधर्म का प्रचार किया। इसकी गिनती विश्व के महान सम्राटों में की जाती है। इसके धर्मलेखों का भाव और तद्गत विचार बौद्धधर्म की अपेक्षा जैनधर्म के अधिक निकट हैं। __कुछ विद्वानों के मतानुसार इसका कुलधर्म जैन था। इसलिए अशोक स्वयं भी यदि पूरे जीवन भर नहीं तो कम से कम उसके पूर्वार्ध तक अवश्य जैन था। ४-अशोक का पुत्र कुणाल मौर्य यह राजकुमार शीलवान तथा सदाचारी था। एक पत्नी व्रती तथा दृढ़ जैनधर्मी था । स्वभावतः वह सरल, उत्तम स्वभावी तथा माता-पिता का परम प्राज्ञाकारी था । कृणाल का कुलधर्म तो जैन था ही; उसकी माता और पत्नी भी परम जिनभक्त थीं। अशोक कुणाल को बहुत चाहता था । इसकी विमाता ने षडयंत्र करके इसे अन्धा करवा दिया था । कुणाल के अन्धा हो जाने के कारण इसके पुत्र सम्प्रति को अशोक ने अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। प्रशोक के जीवन के अन्तिम कई वर्षों में तो समस्त राज्यकार्य युवराज कुणाल की प्राशा से ही संचालन होता था पौर प्रशोक की मृत्यु के बाद कुणाल ही राज्य का अधिकारी हुमा । परन्तु कुणाल नेत्रहीन होने से उसका पुत्र सम्प्रति ही पिता के नाम से राज्य कार्य का संचालन करता रहा। युवराज सम्प्रति इस्वी पूर्व लगभग २४२ से स्वतंत्र रूप से सिंहासनासीन हुप्रा । अशोक ने अपने बड़े पौत्र दशरथ को पाटलीपुत्र का राज्य दिया और सम्प्रति को अपने उत्तराधिकारी के रूप में सम्राट का पद देकर उज्जयनी को उसकी राजधानी बनाया। स्वतंत्र रूप से सिंहासनारूढ़ होने से लगभग १० वर्ष पूर्व से ही राज्यकार्य का वस्तुतः सम्प्रति ही संचालन कर रहा था। पहले वृद्ध पितामह अशोक के अंतिम वर्षों में, अपने पिता युवराज कुणाल के काल में, तदनन्तर अशोक की मृत्यु के उपरांत महाराजा कुणाल के प्रतिनिधि के रूप में राज्य संचालन करता रहा । यद्यपि अशोक ने दशरथ को अपने साम्राज्य का पूर्वोत्तरीय भाग का राज्य दिया और उसकी राजधानी पाटलीपुत्र स्थापित की तथापि वह साम्राज्य के अंतर्गत सम्राट सम्प्रति के अधीन रहा । परन्तु वास्तव में उसका राज्य तो स्वतंत्र ही रहा । यही कारण है कि अशोक की मृत्यु के बाद हम दशरथ को पाटलीपुत्र और सम्प्रति को उज्जयनी में राज्य करते पाते हैं। चंद्रगुप्त मौर्य ने ईस्वी पूर्व ३२२ से २९८ अर्थात् २४ वर्ष तक पश्चात् उसके पुत्र बिन्दुसार ने २६८ से २७३ ईस्वी पूर्व तक २५ वर्ष, पश्चात् उसके पुत्र अशोक ने २७२ से २३२ ईसा पूर्व तक ४० वर्ष, पश्चात् उसके पुत्र कुणाल ने ई० पु० २३२ से २२४ तक ८ वर्ष (कृणाल ने सम्प्रति की सहायता से), पश्चात् उस के पुत्र सम्प्रति ने ईसा पूर्व २२४ से १८४ तक ४० वर्ष राज्य किया। ५-परमार्हत् सम्राट सम्प्रति मौर्य हम लिख पाये हैं कि सम्प्रति अशोक के समय में ही युवराज था। सम्राट कुणाल अंधा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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