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________________ २४८ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म (१०) पंजाबी (गुरुमुखी) लिपि के आविष्कर्ता, सिखमत के आदि-गुरु नानकदेव जी का जन्मस्थान गांव तलवंडी जिला गुजरांवाला में हुआ था। आपका जन्म आज से लगभग ५०० वर्ष पहले हुमा था । आप के दो साहबजादे (सुपुत्र) थे। १-संत हरिचन्द जी तथा २-संत रामचंद जी थे। जिन्होंने क्रमशः निर्मला और उदासी पंथों की स्थापना की थी। (११) गुरु नानकदेव के समय के दूसरे महापुरुष सिद्ध बाबा साई दासजी थे। वे इनके सुपुत्र बाबा रामानन्दजी की समाधियाँ इनकी और गांव बद्दोकी गुसाइयां जिला गुजरांवाला में हैं। इन्हें टोमड़ी साहब कहते हैं। इन महापुरुषों ने हिन्दी में दरवारसाहिब (ग्रंथसाहिब), जपजी साहिब और सुखमणी साहिब की रचना की थी। ये गुरुनानकदेव प्रादि सिखों के गुरुषों के ग्रंथों से भिन्न हैं। . (१२) सिद्ध बाबा सरस्वतीनाथ जी-जिनके आशीर्वाद से महाराजा रणजीतसिंह का जन्म हुमा था। उनकी तपोभूमि भी गुजरांवाला में तालाब देवीवाला के तटवर्ती थी। (१३) महाराजा रणजीतसिंह के समय में हो गये--"लक्खां का वाता" नामक मुसलमान फकीर की दरगाह (कब्र) गुजरांवाला में छत्ती गली में थी। (१४) बाबा निरभेराम पुरी-ये महापुरुष बहुत चमत्कारी हुए हैं । देह छोड़ने के बाद भी इन्होंने अपनी देहरी पर अंग्रेज़ इन्जीनियर को रेलवे लाईन नहीं बिछाने दी। इनका स्थान सिद्धोंवाली देवी के मंदिर गुजरांवाला में था। (१५) कालीकमलीवाला बाबा-ऋषिकेश में स्वर्गाश्रम की स्थापना तथा निर्माण करनेवाले सबसे पहले महापुरुष महात्मा रामानन्द जी जो कालीकमलीवाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध थे। ये रामनगर ज़िला गुजरांवाला के रहने वाले थे । (१६) स्वामी रामतीर्थ (जिनका परिचय हमने यहा नं० ३ में दिया है) के महान शिष्य ब्रह्मलीन स्वामी गोविन्दानंद जी वेदांत के महापंडित थे। पंजाबी भाषा के महाकवि तथा सन्यासी थे। इनका जन्म गुजरांवाला के प्रतिनिकट रामपुरा गांव में हुआ था। संत महापुरुषों की तपो भूमि १-गजरांवाला शहर के दक्षिण की ओर सात-आठ मील की दूरी पर इमनाबाद नामक गांव में 'भाई लालू' जिनकी शुद्ध-पवित्र कमाई से बने हुए रूखे-सूखे भोजन में से गुरु नानकदेव जी ने वृद्ध की धारा निकालकर, उस समय के एक बहुत बड़े पूंजीपति मलिक भागू' का घमंड उस के पाप की कमाई से बने हुए चिकने-चुपड़ें भोजन से लहू की धारा निकालकर चकनाचूर किया था। उनका जन्म इमनाबाद गाँव में ही हुआ था। २. गुरुद्वारा दमदमा साहब के संस्थापक 'भाई साहसिहजी'- जिन्होंने पांच वर्षकी आयु में बालक रणजीतसिंह के गले में सब सरदारों की सभा में फूलों की माला पहनाई थी और महाराजा होने का आशीर्वाद दिया था। इसका जन्म भी इमनाबाद जिला गुजरांवाला में हुमा था। ३. गुजरांवाला के महाराजा रणजीतसिंह के राजकीय गुरुद्वारा के ग्रंथी साहब (धर्मोपदेशक) भाई फेरूसिंह जिन्होंने बचपन में महाराजा रणजीतसिंह को धर्मशिक्षा दी थी तथा गुरुग्रंथ साहब प्रादि सिखमत के ग्रंथ पढ़ाकर उत्तम संस्कार दिये थे । वे भी यहां के ही थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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