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________________ जीरा नगर २३३ उस समय सारे पंजाब में प्रायः ढूंढिया (स्थानकवासी) मत का प्रभाव था। पूज जी की जायदाद के वारस श्वेताम्बर और स्थानकवासी दोनों संघ हैं। इन्हीं पूज जी की जायदाद की आमदनी से यहाँ जैन समाज की तरफ़ से एक फ्री अस्पताल चलता रहा है। अस्पताल की बिल्डिंग तथा अन्य अचल संपत्ति आज भी ट्रस्ट की सम्पत्ति है । इस नगर में न्यायाम्भोनिधि जैनाचार्य श्री मद्विजयानन्द सूरि (आत्माराम) जी का पालन पोषण लाला जोधामल जी नौलखा जैन के यहां हुआ था । आत्मारामजी के पिता श्री गणेशदास जी जो कपूरक्षत्रीय जाति के थे उनके परम मित्र थे। श्री गणेशदास जी महाराजा रणजीतसिंह जी की सेना में उच्चपदाधिकारी थे। अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह में जब इन्हें सेनाकी कमांड करने के लिये भेजा गया तब वे लालाजो को अपने प्रियपुत्र प्रात्माराम सौंप गये। दीक्षा लेने से पहले तक का सारा जीवन (प्रात्माराम जी का) इन्हीं लाला जी की छत्रछाया में व्यतीत हुआ। प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि जी के उपदेश से यहाँ के अनेक परिवारों ने पुनः अपने प्राचीन श्वेताम्बर जैनधर्म को स्वीकार किया उन्हीं के उपदेश से यहाँ की एक श्राविका सुश्री राधा बाई दूगड़ ने अपनी भूमि देकर उस पर अपने खर्चे से श्री जैनश्वेताम्बर मन्दिर का निर्माण कराया। यह श्राविका विधवा और निःसंतान थी। इस मन्दिर निर्माण का सारा कार्य लालूमल दूगड़' जो इस श्राविका के खानदान में से ही थे, ने अपनी देख रेख में कराया। यह तीन मंजिला मंदिर तीन वर्षों में बनकर शिखरबद्ध तैयार हो गया। वि० सं० १६४८ में प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि जी ने इस मंदिर की प्रतिष्ठा करायी। प्रतिष्ठा के समय मन्दिर जी पर ध्वजा लाला लालूमल जी दूगड़ ने चढ़ाई । प्रतिवर्ष परम्परानुसार श्री मन्दिर जी पर ध्वजा उन्हीं के परिवार वाले चढ़ाते हैं। इस मंदिर में मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्थापित किये गये । यह प्रतिमा पालीताना सिद्धगिरि (सौराष्ट्र) से प्राचार्य श्री ने स्वयं भिजवाई थी। इस मंदिर का निर्माण अपने अन्य पाँच साथियों के साथ मिस्त्री शेरसिंह बंगा (ज़िला जालंधर) नगर वाले ने किया था। यह मंदिर १०५ फुट ऊँचा और तीन मज़िला है। इसी मिस्त्री शेर सिंह व मेहरसिंह ने अपने साथियों के साथ ज़ोरा में लाला सावनमल की प्रसिद्ध सराय (धर्मशाला) का भी निर्माण किया था। इस मंदिर के दूसरे भाग का निर्माण बाद में हुआ । इस भाग के निर्माण के लिए एक श्राविका सुश्री प्रेमीबाई ने अपनी दो दुकानें तथा लाला राधामल जी नौलखा ने अपनी दो दुकाने दी थीं । इस भाग का निर्माण यहाँ के श्वेताम्बर जैनसंघ ने कराया। इसमें शांतिनाथ प्रभु को मूलनायक रूप में स्थापित किया गया। बड़े मंदिर जी के मूलनायक श्री चितामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा बड़ी चमत्कारी है। प्रतिवर्ष पोष वदि १० (श्री पार्श्वनाथ के जन्म दिन) को सूर्य की पहली किरण प्रभु के चरण स्पर्श करती है । प्रतिमा दिन में तीन रंग बदलती है। इस मंदिर में एक धातु की प्रतिमा विक्रम की १४वीं शताब्दी की है। श्री मन्दिर जी का क्षेत्रफल ३५० वर्ग गज है। 1. लाला लालूमतनी दूगड़ के प्रपौत्र लाला निहालचन्द जी के सुपुत्र लाला राजेन्द्रकुमार दूगड़ अब चंडीगढ़ मकर आवाद हो गये हैं। जो कि मेलाराम जी के पौत्र हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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