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________________ १६८ (१) कांगड़ा के किले का प्रांगन (१) दर्शनी ड्योढ़ी अथवा मंदिर का क्षेत्र ( temple area) में एक मंदिर में विद्यमान भूरे लाल वर्णके रेतीले पाषाण की श्री श्रादिनाथ ( ऋषभदेव ) की एक विशाल मूर्ति हैं । जो राजा संसारचन्द्र प्रथम के समय में वि० संवत् १५२३ में प्रतिष्ठित हुई थी । (२) एक छोटा-सा मंदिर जिसके द्वार पर पद्मासन में विराजमान २४ तीर्थंकरों के चिन्ह दिखलाई देते हैं । मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म (३) नं० २ में वर्णित मंदिर के बगल के मंदिर में उसी माप का दूसरा जैनमंदिर हैं जिसके द्वार की चौखट पर एक जिनप्रतिमा बनी हुई है। (४) इन दोनों मंदिरों की पीठ की ओर एक पाषाणपट्ट में तीन छोटी-छोटी जिन प्रतिमाएं अंकित हैं । (५) नं० १ के जैनमंदिर की पीठ की ओर एक विशाल शिलापट्ट पर का बड़ा आकार दिखाई पड़ता है । मालूम होता है कि यह एक विशाल भंग हो चुका है । उसके ऊपरी भाग से यह शिलापट्ट सम्बन्ध रखता है । (६) इस बड़े मंदिर के रंगमंडप में खुलनेवाला अंबिकादेवी का मंदिर है जहाँ इस 1. अंबिका (अंबा) देवी जैनों के बाइसवें तीर्थंकर श्री अरिष्टनेमि की शासनदेवी | अरिष्टनेमि श्रीकृष्ण के ताऊ (पिता के बड़े भाई ) समुद्रविजय के पुत्र थे जैन अनुश्रुति के अनुसार इनका निर्वाण का समय चौबीसवें तीर्थंकर श्री महावीर से ८४००० वर्ष पूर्व है (भाज से ८६५०० वर्ष पहले का है) । वर्तमान इतिहासकारों का मत है कि श्री कृष्ण का समय ईसापूर्व ३००० वर्ष है, इस हिसाब से नेमिनाथ का समय भी प्राज से ५००० वर्ष पूर्व का ठहरता है । जो हो । कांगड़ा किला दो मील के विस्तार में है जिस पहाड़ की चोटी पर श्री आदिनाथ का मंदिर है किले का यह भाग जैन मान्यता के अनुसार वास्तव में कटौचवंशीय सुशर्म चन्द्र राजा द्वारा निर्माण कराया हुआ एक बावन - जिनालय (जैनमंदिर ) है । इस बात की पुष्टि इस किले में दर्शनी दरवाजे के नाम से भी होती है । अंबिकादेवी की मदद से इस जैन राजा ने अपने इष्टदेव श्री प्रादिनाथ की प्रतिमा को मूलनायक रूप में स्थापन करके चारों तरफ जैनमंदिरों में मंबिकादेवी तथा अन्य तीर्थंकरों की प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित किया । जो बाद में इस भाग को भी किले के रूप में काम में लिया जाने लगा होगा । ऐसा संभव है । fararaat का परिचय श्रौर प्रभाव - अंबिका देवी Jain Education International जैन तीर्थंकर की मूर्ति जैनमंदिर था जो अब जैन अनुश्रुति के अनुसार इस देवी के पाँच नाम हैं। अंबा, अंबिका, अंबिणी, कुष्माण्डी, और कोहण्डी । "बिका देवी, कनकवणी, सिंहवाहणां, चतुर्भुजां मातुलिंगपाशयुक्त दक्षिणकरां पुत्रांकुशान्वितवामकरां चेति । अर्थात् -- ( प्रभु नेमिनाथ के तीर्थ में) अंबिका नाम की देवी तप्त स्वर्णवर्ण वाली, सिंह की सवारी करने वाली, चार भुजा वाली, दाहिने दो हाथों में बिजोरा औौर पाश ( मतांतर से बिजोरा के बदले म्रलुब कहा है), और बांये दो हाथों में अंकुश और पुत्र को धारण करने वाली है । एवं मुकुट, मोतियों का हार कंकण, नूपुर आदि अलंकारों से अलंकृत है । चरित्र व प्रभाव - सौराष्ट्र जनपद में कोड़ीनगर नामक नगर में सोमदेव नाम का एक वेदवेदांग ज्ञान का पारंगत धनाड्य ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम अंबिणी था । इनके सिद्ध और बुद्ध पु थे । एकदा इनके For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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