SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कश्मीर में चमधर्म १३३ २–पाइने अकबरी में अबुल फ़ज़ल लिखता है कि-- यह शारदा मंदिर शुक्लपक्ष की अष्टमी को पूरा हिलने लगता है। ३-शारदा तीर्थ (देवस्थान) कृष्णगंगा तथा मधुमती के संगम पर है । यह एक पहाड़ी पर स्थित है। काश्मीर में जैनधर्म को विद्यमानता का काल काश्मीर में बहुत प्राचीन काल से जैनधर्म की विद्यमानता के प्रमाण उपलब्ध हैं। काश्मीर में शत्रुजयावतार तीर्थ जैनाचार्य श्री रत्नशेखरसूरि श्राद्धविधि प्रकरण में लिखते हैं कि शत्रुजय (विमलाचल) की यात्रा काश्मीर देश में अनेक राजारों आदि ने की जिस का विवरण इस प्रकार है-यह घटना पाँचवें तीर्थंकर श्री सुमतिनाथ से पहले की है। (१) मलयदेश के राजा जितारि के मन में शंखपुर से विमलाद्री नामक महातीर्थ की यात्रा के लिये निकले हुए संघ में सम्मिलित श्रुतसागर प्राचार्य के मुख से इस तीर्थ का माहात्म्य सुनने पर इस तीर्थ की छरी-पालित यात्रा करने की उत्कट भावना हुई । इसने मंत्रियों को आज्ञा दी कि वे शीघ्र ही विमलगिरि महातीर्थ की यात्रा की तैयारी करें। यह कह कर इसने ऐसी प्रतिज्ञा की कि जबतक मैं पैदल चलकर छरी पालन करते हुए संघ के साथ विमलाचल तीर्थ पर पहुँचकर श्री ऋषभदेव की वन्दना नहीं करूंगा तब तक अन्न-जल पान नहीं करूंगा। हंसी, सारसी नामक इस की दोनों रानियों तथा अन्य लोगों ने भी ऐसा ही अभिग्रह किया। राजा सकुटुम्ब, मंत्रियों तथा अनेक परिवारों के साथ यात्रा के लिये प्राचार्य श्रुतसागर के साथ चल पड़ा। शीघ्रता से मार्ग काटते हुए संघ काश्मीर देश के एक वन में पहुंचा। उस समय भूख-प्यास, पैदल चलने से थकावट इत्यादि कारणों से राजा और दोनों रानियाँ व्याकुल हो गये। तब सिंह नामक मंत्री और प्राचार्य श्रुतसागर जी ने पच्चक्खाण दण्डक में आगारों को बतलाते हुए राजा को अभिग्रह का त्याग करके अन्न-जल लेने का आग्रह किया। राजा जितारि तथा रानियां यद्यपि शरीर से व्याकुल थे, तथापि दृढ़ निश्चयी थे, उन्होंने कहा कि प्राण जाएं तो चिन्ता नहीं है, पर हम अपना मभिग्रह भंग नहीं करेंगे। इतने में विमलाद्री के अधिष्टायक देव ने स्वप्न में प्रकट होकर राजा आदि से कहा किमैं राजा जितारि के अभिग्रह से सन्तुष्ट होकर अपनी दिव्यशक्ति से विमलाचल तीर्थ को यहीं पर ले पाता हूँ। जब प्रातःकाल में तुम लोग प्रयाण करोगे वैसे ही तुम को यहाँ पर इस तीर्थ के दर्शन होंगे। यहाँ श्री ऋषभदेव के दर्शन करके अपना अभिग्रह पूरा करना । प्रातःकाल जब संघ ने प्रयाण शुरू किया, उसी समय यक्ष ने क्षणमात्र में काश्मीर देश के उस वन में पर्वत पर नये विमलाचन तीर्थ को बनाकर स्थापित कर दिया ! प्रातः काल होते ही श्री श्रुतसागर सूरिजी, राजा जितारि, सिंह मंत्री, रानियां संघ के साथ १-(१) एकाहारी-प्रतिदिन एकासना करना । (२) सचित परिहारी–सचित वस्तु का त्याग करना। (३) ब्रह्म चारी-ब्रह्मचर्य का पालन करना । (४) पादचारी-पैदल चलना । (५) गुरुसहचारी-गुरु के साथ चलना । (६) भूमि संथारि-भूमि पर बिछौना बिछा कर सोना। जिस यात्रासंघ में यात्री उपर्युक्त छः प्रकार के नियमों का पालन करें, उसका नाम छ: री पालित यात्रा संघ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy