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________________ (घ) कायोत्सर्ग दीर्घकालीन [ कार्योत्यर्ग खडे रहकर, बैठकर और लेटकर तीनो मुद्राओं में किया जाता हैं । खड़े रहकर करना उत्तम कायोत्सर्ग, बैठकर करना मध्यम कायोत्सर्ग, लेटकर करना सामान्य कायोत्सर्ग है । 1. खडे रहकर कायोत्सर्ग करने की मुद्रा :- सीधे खडे रहें । दोनो हाथ साथल पर सटे रहें । दोनो पैरों के मध्य आधा फुट का फासला रहे । मेरुदण्ड और गर्दन सीधी रहे । सिर थोडा झुका हुआ । ठुड्डी छाती से चार अंगुल ऊपर हो । 1 2. बैठकर कायोत्सर्ग करने की मुद्रा :- सुखासन में बैठें । मेरुदण्ड और गर्दन को सीधा रखें । ठुड्डी छाती से चार अंगुल ऊपर हो । ब्रह्म मुद्रा- बांई हथेली नाभि के नीचे और दाहिनी हथेली बांई हथेली के ऊपर स्थापित करें । अंगुठे एक-दुसरे से सटे रहेंगे । 3. लेटकर कायोत्सर्ग करने की मुद्रा :- पीठ के बल लेटें । दोनो पैरों के मध्य एक फुट का फासाला रहे । दोनो हाथ शरीर के समानान्तर आधा फुट की दुरी पर रहें । हथेलीयां आकाश की तरफ खुली रखें । र्गदन और सिर शिथिल रहे । आँखे कोमलता से बन्द रहे । शरीर स्थिल रहे । I पहला चरण कायोत्सर्ग के लिए तैयार हो जाएं। कायोत्सर्ग का प्रारम्भ खड़े-खड़े होगा । लेटने जितने स्थान की व्यवस्था कर, खड़े-खड़े कायोत्सर्ग का संकल्प करें । "तस्स उत्तरीकरणेणं, पायच्छित्तकरणेणं, विसोहीकरणेणं, विसल्लीकरणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्टाए ठामि काउसग्गं ।" "मैं शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तनावों से मुक्त होने के लिए कायोत्सर्ग का संकल्प करता हूं।" (कायोत्सर्ग की अवधि निश्चित करने का निर्देश दें ।) Jain Education International For Private & Personal Use Only (तीन मिनट) www.jainelibrary.org
SR No.003162
Book TitleJivan Vigyana aur Jain Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size4 MB
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