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________________ आसन 2. भुजंगासन भुजंग संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ 'सर्प' होता है। सर्प एक फुर्तीला प्राणी है। भुजंगासन करते समय व्यक्ति के शरीर की आकृति व स्थिति सर्प के सदृश जान पड़ती है, साथ ही भुजंगासन में श्वास छोड़ते समय मुख से सर्प के फुफ्कार की आवाज होती है, इसलिए भी इसे भुजंगासन कहा जाता है। भुजंगासन को सासन भी कहते हैं। विधिः भुजंगासन का पहला प्रकार सीने और पेट के बल भूमि पर लेटें। पैर के अंगूठे भूमि का स्पर्श करते हुए परस्पर सटे रहेंगे। दोनों हाथों की हथेलियां बगल की पसलियों से एक फुट दूर रहेंगी। श्वास को भरते हुए सीने और गर्दन को धीरे-धीरे आधा फुट के लगभग ऊपर उठाएं। मुख के सर्प की - तरह फुफकार करते हुए श्वास को बाहर फेंकें। श्वास को भरते हुए सीने और गर्दन को पूरा ऊपर उठाएं। इससे नाभि तक का भाग ऊपर उठ जाएगा। गर्दन को जितना पीछे ले जा सकते हैं ले जाएं। ऊपर आकाश को देखने का प्रयत्न करें। श्वास जितना आराम से रोक सकें, रोकें। पुनः फुफ्कार करते हुए श्वास का रेचन करें और गर्दन एवं सीना भूमि की ओर ले आएं। शिथिलता की मुद्रा में विश्राम करें। भुजंगासन का दूसरा प्रकार पहले की तरह सीने के बल भूमि पर लेटें। हाथ सीने से आधा फुट दूर रहें। श्वास भरते हुए सीने और गर्दन को आधा फुट ऊपर उठाएं। फुफ्कार करते हुए मुंह से श्वास को बाहर निकालें। नाक से श्वास भरते हुए सीने और गर्दन को ऊपर उठाएं। आराम से, सहजता से श्वास जितनी देर रोक सकें, भीतर रोकें। पुनः फुफ्कार करते हुए श्वास छोड़ें। धीरे-धीरे सीने और गर्दन को भूमि पर ले आएं। शिथिलता की मुद्रा में आएं। भुजंगासन का तीसरा प्रकार सीने के बल लेटी मुद्रा में लेटें। हाथ शरीर के बगल में सटाएँ । नाक से श्वास भरते हुए सीने को आधा फुट ऊपर उठाएं। मुंह से फुफ्कार करते हुए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003162
Book TitleJivan Vigyana aur Jain Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size4 MB
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