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________________ १६८ तब होता है ध्यान का जन्म जैन विश्व भारती में प्रेक्षाध्यान सीखने के लिए जर्मनी की एक युवती आई। उसने कहा- 'मुझे डर बहुत लगता है। इसके लिए क्या प्रयोग करना चाहिए? डर का कोई कारण नहीं, हेतु नहीं, फिर भी डर लगता है । मन में एक असुरक्षा का भाव बना रहता है ।' भय का हेतु है - मूर्च्छा । मूर्च्छा है, इसलिए भय पैदा हो रहा है। स्नायविक दुर्बलता भी भय को पैदा करती है, निषेधात्मक भाव भी भय को पैदा करता है, किन्तु इन सबकी जड़ में मूर्च्छा है, पदार्थ के प्रति आसक्ति है । सबसे पहली आसक्ति है शरीर के प्रति । शरीर के प्रति मूर्च्छा है इसलिए भय रहता है । शरीर को कहीं चोट न आ जाए, यह भय बना रहता है। शरीर की मूर्च्छा से ही सारा भय पैदा होता है, असुरक्षा पैदा होती है । जिस व्यक्ति के मन में शरीर की मूर्च्छा नहीं है, वह सर्वथा अभय है । कौन करता है सुरक्षा ? भगवान महावीर अकेले घूमे। जंगलों में घूमे। वहां गए, जहां सामने मौत दिखाई दे रही थी, जहां भयंकर दृष्टविष सर्प चण्डकौशिक सामने था, जहां यक्ष सामने था । पुजारी ने कहा- यह शूलपाणि यक्ष का मंदिर है यहां रहने वाला रात को जीवित रहता है पर सुबह जीवित नहीं मिलता । प्रातः केवल उसकी लाश मिलती है। तुम यहां मत रहो । महावीर ने इस कथन को सुना, किन्तु स्वीकार नहीं किया। महावीर वहीं रहे, कोई भय नहीं था, असुरक्षा नहीं थी । महावीर से कहा गया- आपको अकेले में काफी कष्ट होते हैं । आपके साथ हम सुरक्षा की व्यवस्था कर दें । महावीर ने उत्तर दिया- 'सुरक्षा की व्यवस्था दूसरा कौन करने वाला है?, सुरक्षा मेरे भीतर है। बाहर से कौन सुरक्षा करने वाला है? यह कितनी सचाई है। सुरक्षा के नाम पर आज एक व्यक्ति के साथ अनेक कमाण्डो चलते हैं, फिर भी आतंकवादी उसे मार देते हैं । कमाण्डो देखते ही रह जाते हैं और वे भी मौत के शिकार हो जाते हैं । आखिर सुरक्षा है कहां ? जहां मूर्च्छा है, वहां कहीं सुरक्षा होती नहीं है । मूर्च्छा और भय शरीर की मूर्च्छा से भय और भय से असुरक्षा - यह एक चक्र है। सुरक्षा के लिए सबसे पहले भय से मुक्ति पाना जरूरी है, अभय होना जरूरी है । अभय के लिए मूर्च्छा का त्याग जरूरी है। यदि मूर्च्छा का त्याग नहीं है तो एक भय मिटेगा, दूसरा भय पैदा हो जाएगा । एक व्यक्ति बहुत डरता था । किसी मंत्रज्ञ के पास गया, बोला- 'मुझे डर बहुत लगता है । कोई ऐसा ताबीज बना दो, जिससे मेरा डर समाप्त हो जाए ।' मंत्रज्ञ व्यक्ति ने मंत्र का एक ताबीज बनाकर देते हुए कहा- तुम हाथ के बांध लो, तुम्हें डर नहीं लगेगा। उसने हाथ के बांध लिया। कुछ माह बाद मिला । मंत्रज्ञ ने पूछा- 'कहो, कैसे हो? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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